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धर्म और विज्ञान / १६७
वाला कोई तत्व नहीं खोजा । उसने चेतना के उन आयामों की खोज की जो सुविधा के अभाव में होने वाली असुविधा को सह सकें ।
कुछ धार्मिक नेता कहते हैं – विज्ञान ने धर्म का सत्यानाश कर दिया । उसके कारण जनता की धर्म के प्रति आस्था डगमगा गयी है । किन्तु मुझे इसमें सचाई नहीं लगती है । यदि धर्म सत्य की खोज है, तो कोई दूसरी शक्ति उसके प्रति अनास्था पैदा नहीं कर सकती । उसे पदच्युत नहीं कर सकती । मेरी धारणा यह है कि विज्ञान ने धर्म को उपकृत किया है । स्थूलदृष्टि वाले लोग धर्म के सूक्ष्म सत्यों पर विश्वास नहीं करते थे, उसे निरी गप्प या कपोलकल्पना मानते थे । वे अब ऐसा नहीं सोचते । विज्ञान के द्वारा सूक्ष्म सत्यों का उद्घाटन होने पर जनता की दृष्टि में परिवर्तन हुआ है । अब वह सूक्ष्म सत्यों के प्रति आस्थाहीन और संदिग्ध नहीं है ।
निगोद वनस्पति के सुई की नोंक टिके उतने भाग में अनन्त जीव होते हैं - यह एक धार्मिक सिद्धान्त है । यह सहज बुद्धिगम्य नहीं है, इसलिए चिरकाल तक सन्देह का विषय बना रहा । किन्तु अब इस सूक्ष्मता में सन्देह नहीं किया जा सकता | शरीरशास्त्र के अनुसार शरीर के पिन की नोंक टिके उतने भाग में दस लाख कोशिकाएं हैं। पांच फुट के मानव शरीर में छह सौ खरब कोशिकाएं हैं । यह विशाल संख्या वनस्पति विषयक संख्या को संभव बना देती है ।
मनोविज्ञान के क्षेत्र में जिस दिन चेतन मन की सीमा को पार कर. अवचेतन और अचेतन मन की अवधारणा निश्चित हुई, उस दिन चेतनाजगत् की सूक्ष्मता की दिशा में एक अभिनव अभियान शुरू हो गया ।
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लेश्या या आभामंडल का सिद्धान्त समझ से परे हो रहा था । प्रत्येक जीव के आस-पास एक आभामंडल होता है । भाव - परिवर्तन के साथ-साथ वह परिवर्तित होता रहता है । मृत्यु के आस-पास वह क्षीण होने लगता है, और मृत्यु के साथ वह समाप्त हो जाता है। अथवा इस प्रकार कहा जा सकता है कि उसके क्षीण होने पर प्राणी की मृत्यु हो जाती है ।
विज्ञान के क्षेत्र में आभामंडल का सिद्धान्त प्रतिष्ठित हो चुका है । किर्लियन दंपति के इस विषय में किए गए प्रयोग बहुत महत्त्वपूर्ण हैं। उन्होंने पदार्थ और प्राणी दोनों के आभामंडल के फोटो लिये। उन दोनों में एक
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