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धर्म और विज्ञान
मनुष्य में सत्य की जिज्ञासा और उसकी खोज का प्रयत्न चिरकाल से रहा है । उसका स्थूल रूप हमारे सामने है । मनुष्य केवल स्थूल से संतुष्ट नहीं होता । वह निरन्तर स्थूल और सूक्ष्म की ओर प्रस्थान करता है । धर्म की खोज सूक्ष्म तत्त्व की खोज है | आत्मा, परमात्मा, परमाणु, कर्म—ये सभी सूक्ष्म तत्त्व हैं । साधारण जीवन-यात्रा में इनका सीधा संबंध नहीं है । इस खोज का माध्यम रहा है—अन्तर्दृष्टि, अतीन्द्रिय चेतना और गम्भीर एवं एकाग्र चिन्तन ।
विज्ञान ने भी सूक्ष्म सत्यों को खोजा है । उसकी खोज के माध्यम हैं सूक्ष्मदर्शी उपकरण | वैज्ञानिक जगत् में ये उपकरण प्रचुर मात्रा में विकसित हुए हैं । इनके द्वारा एक सामान्य आदमी सूक्ष्म तत्त्वों को जान सकता है | किन्तु एक वैज्ञानिक के लिए ये उपकरण ही पर्याप्त नहीं हैं । उसके लिए अन्दृष्टि, चिन्तन की एकाग्रता और निर्विचारता उतने ही आवश्यक हैं, जितने एक धर्म की खोज करने वाले के लिए ।
धर्म भी सत्य की खोज है और विज्ञान भी सत्य की खोज है । जहां तक सत्य की खोज का प्रश्न है, दोनों एक बिन्दु पर आ जाते हैं । पर उद्देश्य की दृष्टि से दोनों के अवस्थिति-बिन्दु भिन्न हैं । धर्म के क्षेत्र में सत्य की खोज का उद्देश्य है-अस्तित्व और चेतना का विकास । विज्ञान के क्षेत्र में सत्य की खोज का उद्देश्य है-अस्तित्व और पदार्थ का विकास । क्षेत्र की सीमा में दोनों का उद्देश्य समान हो जाता है । किन्तु उपादेय की सीमा में वे भिन्न हो जाते हैं।
विज्ञान ने जीवन-यात्रा के लिए उपयोगी अनेक तत्त्व खोजे हैं। खाद्य, चिकित्सा व सुविधा के क्षेत्र में पर्याप्त प्रगति हुई है ? धर्म ने सुविधा देने
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