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१६४ / मैं हूं अपने भाग्य का निर्माता चाहिए | पर इतना अवश्य सुझाना चाहता हूं एक उपाय के रूप में कि प्रत्येक व्यक्ति को अपने भविष्य के बारे में जानकारी होनी चाहिए । कब, किस समय, कैसा समय बिताना है, उसका क्या उपाय करना है, इसकी जानकारी होनी चाहिए | इस जानकारी से अनेक लाभ मिल सकते हैं । नमस्कार महामंत्र का जप, इष्टदेव का जप, आचार्यों के नाम का जप-ये सारे जप आने वाले प्रभावों से व्यक्ति को बचाते हैं । इनसे प्रतिरोधात्मक शक्ति का विकास होता है । जो प्रतिरोधात्मक शक्ति से शून्य होता है वह अपना विकास नहीं कर सकता । जो अपना सारा समय गप्पों में बिताता है, प्रमाद और आलस्य में बिताता है, उसकी प्रतिरोधात्मक शक्ति चुक जाती है । वह प्रभावों से बचने के लिए कवच का निर्माण नहीं कर सकता । व्यक्ति इतने प्रभावों से घिरा हुआ है तो क्या सुरक्षा कवच का निर्माण आवश्यक नहीं होता ? आगमों का कथन है कि व्यन्तर और भूत-प्रेत उसी को सताते हैं जो प्रमादी होता है । जो प्रमाद नहीं करता, उसे कोई नहीं सताता .।
पार्श्वनाथ की परम्परा के एक संत थे मुनि सुदर्शन | वे तपस्वी, स्वाध्यायी और ध्यानी थे । कायोत्सर्ग सधा हुआ था । एक बार सुकर्ण कापालिक ने उन्हें जलाने के लिए एक तांत्रिक प्रयोग किया । मुनि सुदर्शन अपने साथी संतों के साथ पाद-विहार में थे । उस समय कापालिक ने महाज्वाला का प्रयोग किया । महाज्वाला चली, रास्ते में एक वृद्ध संत को जला डाला । मुनि सुदर्शन को तांत्रिक प्रयोग का आभास हुआ । उन्होंने अपने साथ वाले संतों से कहा—सब कायोत्सर्ग मुद्रा में स्थित हो जाएं । मुनि सुदर्शन ने भी कायोत्सर्ग किया । एक वलय बन गया । महाज्वाला आयी । उसने उस वलय के चारों ओर चक्कर काटा, पर भीतर प्रवेश पाने में वह असमर्थ रही । सब मुनि कायोत्सर्ग मुद्रा में स्थित थे । महाज्वाला का यत्न व्यर्थ गया । वह मुड़ी और शांब कापालिक के पास पहुंच उसे अर्द्धदग्ध कर डाला | उपद्रव मिट जाने पर कायोत्सर्ग पूरा कर सभी मुनि चले गये ।
कायोत्सर्ग प्रतिरोधात्मक शक्ति को विकसित करने का उपाय है । जो व्यक्ति निरंतर स्वाध्याय, ध्यान, जप आदि में रत रहता है, प्रमाद नहीं करता, वह प्रतिरोधात्मक शक्ति को जागृत कर लेता है । वही व्यक्ति 'अप्पा कत्ता विकत्ता य' के अनुसार आत्म-कर्तृत्व को समझ सकता है । अन्यथा जो निरंतर
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