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सत्यनिष्ठा | १५५ ही जीवन में सत्य प्रज्ज्वलित होता जाएगा और सत्य की निष्ठा पनपती जाएगी।
हमारे मस्तिष्क में अरबों-खरबों सेल्स हैं । सब अपना-अपना कार्य करते हैं । जिस व्यक्ति में सत्य का प्रकोष्ठ (सेल्स) जागृत हो जाता है, सक्रिय हो जाता है, उसमें गहरी सत्यनिष्ठा जाग जाती है । वह अपने नियम या प्रण से बंध जाता है । उसमें प्रामाणिकता आ जाती है । प्रामाणिकता भी नियम के कारण आती है । वह जाने-अनजाने अप्रामाणिक कार्य नहीं करता । यह सत्यनिष्ठा विकार-शमन से प्राप्त होती है । जब आन्तरिक दोष न्यून होते जाते हैं, तब ये सेल्स जागृत होते जाते हैं।
चाणक्य मगध साम्राज्य का प्रधानमंत्री था, सर्वेसर्वा था । वह राजनीति का प्रवर्तक माना जाता है । उसकी बुद्धि और सूझबूझ से मगध सम्राट आश्वस्त थे । वह इतने बड़े पद पर था, उसका आचरण पवित्र और विश्वस्त था । वह पूरे साम्राज्य का संचालन करता था । उसके इशारे पर चन्द्रगुप्त कार्य करता । इतना शक्तिशाली, प्रज्ञावान होने पर भी चाणक्य बहुत संतुष्ट था । वह स्वयं में अकिंचन-सा जीवन जीता । वह घासफूस की बनी एक झोंपड़ी में रहता | कई विदेशी लोग उससे मिलते और उसकी सादगी देखकर दंग रह जाते । फाहियान ने मगध देश में आचार्य चाणक्य की प्रशंसा सुनी। वह उससे मिलने राजधानी में आ पहुंचा । वह चाणक्य से मिलने रात्रि में गया । उस समय चाणक्य अपना कार्य कर रहा था । तेल का एक दीपक जल रहा था । आगंतुक विदेशी अतिथि को जमीन पर बिछे आसन पर बैठने का अनुरोध किया और एक ही फूंक में जलते दीपक को बुझा डाला । अंदर गया और दूसरा दीपक जलाकर ले आया । आगंतुक विदेशी व्यक्ति आश्चर्य में पड़ गया । वह इस रहस्य को नहीं समझ सका कि जलते हए दीपक को बुझाकर, बुझे हुए दूसरे दीपक को जलाना, कैसी बुद्धिमानी हो सकती है । उसने संकोच करते हुए चाणक्य से पूछा यह क्या खेल है ? जलते हुए दीपक को बुझाया और दूसरा जलाया । जलाना था तो बुझाया क्यों और बुझाना था तो फिर जलाया क्यों ? रहस्य क्या है ? चाणक्य ने मुसकराते हुए कहा--- इतनी देर मैं अपना निजी कार्य कर रहा था । इसलिए मेरा दीया जल रहा था । अब आप आ गए । मुझे राज्य के कार्य में लगना होगा, इसलिए यह
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