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________________ १५० / मैं हूं अपने भाग्य का निर्माता में नहीं, अभयकुमार का नाटकमात्र है । वह बोला- ओह, मैंने अपने जीवन बहुत धर्म किया है, पुण्य किया है, अहिंसा और दया का पालन किया है, इसलिए यहां (इस स्वर्ग में) आकर उत्पन्न हुआ हूं। अभयकुमार का षड्यंत्र विफल हो गया । आज के वैज्ञानिकों ने अनेक सूक्ष्म नियमों की खोज की है । अपराधों को पकड़ने के लिए उन्होंने अनेक साधन आविष्कृत कर उसमें सफल हुए हैं। अपराधी को एक यंत्र के सामने खड़ा किया जाता है। अपराधी से अपराध के विषय में पूछा जाता है । यदि वह झूठ बोलता है, तो यंत्र की सुई घूमती है और भिन्न प्रकार का ग्राफ उभर आता है। यदि वह अपराध को स्वीकृति देता है तो भिन्न प्रकार का ग्राफ उभर आता है। यंत्र के माध्यम से यथार्थ जान लिया जाता है । इसका भी ठोस आधार है । यदि कोई व्यक्ति झूठ बोलता है, यथार्थ को छिपाता है तो उसके भीतर एक प्रकार की प्रक्रिया होती है, एक प्रकार के प्रकंपन होते हैं और जो सत्य बोलता है, उसके भीतर भिन्न प्रकार की प्रक्रिया होती है, भिन्न प्रकार के प्रकंपन होते हैं। यंत्र का काम है प्रकंपनों को पकड़ना और उन्हें ग्राफ पर अंकित करना । उस अंकन के आधार पर निर्णय कर लिया जाता है कि अमुक अपराधी है, और अमुक अपराधी नहीं है । यह सब नियम के आधार पर होता है। अपराध की खोज केवल यंत्र ही नहीं, कुत्ते भी करते हैं । आज पुलिस अपराधियों को पकड़ने के लिए कुत्तों का उपयोग कर रही है और यह प्रमाणित हो चुका है कि कुत्ते इसमें शत-प्रतिशत सफल रहे हैं। कुत्ते को हत्या के स्थान पर या चोरी के स्थान पर ले जाया जाता है। कुत्ता वहां सूंघता है और उस गंध के आधार पर हजार मील पर जाकर भी अपराधी को पकड़ लेता है। आश्चर्य होता है कि कुत्ते को इतना ज्ञान कैसे हो जाता है ? हजार मील पर गये चोर को पकड़ पाना पुलिस के लिए भी कम संभव है तो भला कुत्ता उसे कैसे पकड़ लेता है ? इसका अर्थ यह होता है कि कुत्ता आदमी से अधिक ज्ञानी है । आश्चर्य होता है । पर नियम को समझ लेने पर इसमें आश्चर्य जैसी कोई बात नहीं है । कुत्ते की घ्राणशक्ति बहुत तीव्र होती है। गंध के आधार पर वह अपराधी को पकड़ने में समर्थ हो जाता है । सत्य का अर्थ है --- नियम- प्राकृतिक नियम और चेतना के नियम | Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003111
Book TitleMain Hu Apne Bhagya ka Nirmata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages274
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size12 MB
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