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________________ सत्यनिष्ठा / १४९ विज्ञान प्रत्येक नियम की खोज करता है। उसने प्रत्येक क्षेत्र के नियमों को जानने का प्रयास किया है । एक आदमी बुरा आचरण करता है, हत्या करता है, अपराध करता है । प्राचीन काल में चोर को चोर या हत्यारे को हत्यारा प्रमाणित करने के लिए साधक होता है गवाह या साक्षी कोई यह प्रमाणित कर देता कि मैंने इसे चोरी करते या हत्या करते देखा है तो उस आधार पर अपराधी को सजा दे दी जाती । अपराधी की पहचान का दूसरा साधन यह था कि उसे भय दिखाकर या अत्यधिक यातना देकर उससे अपराध स्वीकार करा लिया जाता । तीसरा साधन यह था कि उसे ऐसी वस्तु खिला दी जाती, जिससे वह बेहोशी में सारी बात उगल देता । महावीर के समय की घटना है। मगध के प्रसिद्ध चोर रोहिणेय का आतंक सारे राज्य में व्याप्त था । उसको पकड़ने के लिए अनेक प्रयत्न किये, पर सब व्यर्थ सिद्ध हुए । अन्त में यह कार्य महामंत्री अभय कुमार को सौंपा गया । उसने चोर को पकड़ लिया । चोर ने अपना एक भी अपराध स्वीकार नहीं किया । अभयुमार ने युक्ति लगाई । उसने उस चोर को मदिरा पिलायी । चोर नशे में धुत हो गया | अभयकुमार ने एक कमरे को ऐसे सजाया, मानो कि वह स्वर्ग का ही एक खण्ड हो । चोर को वहां लाकर सुला दिया । अप्सराओं की वेशभूषा पहने पांच-सात स्त्रियां वहां उपस्थित हुईं। उन्होंने चोर से पूछाआपने ऐसी कौन-सी करणी की है, ऐसी कौन सी तपस्याएं कीं, ऐसा कौन सा- आचरण किया जिससे कि आप आकर इस स्वर्ग लोक में उत्पन्न हुए, हमारे स्वामी बने, नाथ बने । आप हमें बताएं कि आपने क्या दान दिया ? क्या-क्या कार्य किये ? यह सारा नाटक इसलिए किया गया कि चोर इस चकाचौंध को देखकर, अपनी सारी बात बताए । पर यह उपाय भी कारगर नहीं हुआ । चोर को कुछ होश आया । उसने चारों ओर देखा । पहले क्षण में उसे ऐसा आभास हुआ कि वह स्वर्ग में है | फिर कुछ विचार आया । उसने अप्सराओं के पैरों की ओर देखा । उसने महावीर से सुना था कि देवताओं के, अप्सराओं के पैर जमीन पर नहीं टिकते । वे जमीन से चार अंगल ऊपर रहते हैं। वहां उपस्थित स्त्रियों के पैर जमीन को छू रहे थे । उसने मन ही मन समझ लिया कि यह सब माया है, षड्यंत्र है । ये अप्सराएं नहीं वेश्याएं हैं । यह स्वर्ग Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003111
Book TitleMain Hu Apne Bhagya ka Nirmata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages274
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size12 MB
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