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१४८ / मैं हूं अपने भाग्य का निर्माता एक बार मैंने शिविर में सत्य की व्याख्या प्रारम्भ की, चर्चा चली । चर्चा करतेंकरते सत्य की व्याख्या स्पष्ट हो गयी ।
० सत्य का अर्थ है- नियम की खोज । ० सत्य की खोज है- नियम की खोज । ० सत्य का बोध है— नियम का बोध । ० सत्य का आचारण है-नियम का आचरण ।
सत्य की यह व्याख्या बहुत ही व्यावहारिक और व्यापक है । यथार्थ में सत्य का अर्थ है- नियम |
यह संसार नियमों से बंधा हुआ है । प्रत्येक वस्तु और मनुष्य नियम के आधार पर चल रहा है । नियम को वह जाने न जाने, यह दूसरी बात है किन्तु नियम अपना काम कर रहा है | नियम एक नहीं है, हजारों-हजारों नियम हैं।
अनेकान्त का सिद्धान्त नियमों को जानने का साधन है । अनेकान्त ने नियमों की व्याख्या की है, फिर चाहे वह वाणीगत नियम हो या वस्तुगत नियम हो ।
पर्याय दो प्रकार के होते हैं... व्यंजन पर्याय और अर्थ पर्याय | यह सारा नियमों का बोध है ।
जो व्यक्ति नियमों को जानता है, वह सत्य को पकड़ लेता है । वैज्ञानिक जगत् में यंत्रों का जितना निर्माण हुआ है, वह सारा नियमों के अवबोध के आधार पर हुआ है । वैज्ञानिक वह होता है, जिसमें नियम को पकड़ने की, समझने की क्षमता होती है । नियम को बनाने वाला कोई नहीं होता । नियम अनादि है, यूनिवर्सल है । जो उन नियमों को पकड़ता है, वह होता है ऋषि, वह होता है मुनि और वह होता है वैज्ञानिक— दोनों पर्यायवाची शब्द हैं । मुनि का अर्थ है- ज्ञानी, नियमों को जानने वाला | मुनि शब्द 'मुण ज्ञाने' धातु से निष्पन्न होता है | इसलिए मुनि का अर्थ ज्ञानी ही होना चाहिए । मुनि कहो या वैज्ञानिक कहो, कोई अन्तर नहीं पड़ता | मुनि वह होता है, जो नियमों को जानता है । वैज्ञानिक वह होता है, जो नियमों को जानता है । मुनि का अर्थ संयमी क्यों चल पड़ा, यह अन्वेषणीय है । संयम मुनि की क्रिया है, वह मुनि का अर्थ नहीं है |
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