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सत्यनिष्ठा / १४७
चेहरा और दूसरा है मुखौटे का चेहरा । प्रत्येक आदमी मुखौटे के चेहरे को प्रदर्शित करता है । स्थूल चेतना वाला आदमी मुखौटे के चेहरे को जानता है और सूक्ष्मदर्शी व्यक्ति यथार्थ के चेहरे को जानता है ।
अनेक व्यक्ति आचार्य या गुरु के पास आते हैं । उनके मन में कुछ और होता है और वे प्रदर्शन किसी और भावना का ही करते हैं। गुरु तत्काल जान जाते हैं कि यह माया की रचना कर रहा है। वे उसे पकड़ लेते हैं । आचार्य भिक्षु में यह विशेषता थी कि वे दूसरे के मन को पढ़ लेते थे आचार्य श्री पढ़ लेते हैं । अनेक प्रसंग हमारे सामने हैं ।
आचार्य भिक्षु बैठे थे | एक भाई ने आकर पूछा- भीखनजी ! घोड़े के पैर कितने होते हैं ? आचार्य भिक्षु कुछ क्षणों तक चिन्तन की मुद्रा में रहे, फिर गिनने लगे — एक, दो, तीन और चार । गिनकर बताया- घोड़े के चार पैर होते हैं । उस व्यक्ति ने कहा- मैंने तो सोचा था कि आप बड़े बुद्धिमान हैं । परन्तु घोड़े के पैर बताने में आपको गणित करना पड़ा । इतना समय लगा ? आचार्य भिक्षु बोले- यह गणित करना आवश्यक था क्योंकि मैं जानता था कि तुम्हारे मन में क्या है । तुमने सोचा- पहले मैं भीखनजी से पूछूंगा कि घोड़े के पैर कितने होते हैं । वे तत्काल उत्तर दे देंगे कि घोड़े के चार पैर होते हैं । तब मैं अगला प्रश्न यह पूछूंगा - कनखजूरे के पैर कितने हैं ? वे बता नहीं पाएंगे, अटक जाएंगे। मैं कहूंगा अब बताओ तो जानें ? भीखनजी की यह बात सुनकर वह व्यक्ति अवाक् रह गया । उसने कहामैं पूछना तो यही चाहता था । आपने मेरे मन की बात जान ली ।
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जो तत्त्वदर्शी होता है, वह मुखौटे का नहीं देखता, वह असली चेहरे को देखता है । सामान्य आदमी होता है स्थूलदर्शी । वह मुखौटे को देखता है और उसी के आधार पर निर्णय करता है । वह अच्छे-बुरे का निर्माण इसी आधार पर करता है । तत्त्वदर्शी व्यक्ति के निर्णय का आधार दूसरा होता है, असली चेहरा होता है ।
आज के विज्ञान ने अनेक सूक्ष्म नियमों की खोज की है ! मेरे मन में एक प्रश्न उभरता रहता था कि यथार्थ में सत्य क्या है ? बहुत सोचने-समझने पर भी यह प्रश्न समाहित नहीं हो रहा था । सत्य की सैकड़ों व्याख्याएं प्रस्तुत थीं, किंतु कोई भी व्याख्या व्यावहारिक नहीं बन रही थी । चिन्तन चालू रहा ।
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