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१४४ / मैं हूं अपने भाग्य का निर्माता अच्छाई की खोज बुराई का अतिरेक होने पर होती है । यदि सब लोग भले हों तो अच्छाई को अलग देखने की जरूरत नहीं पड़ती । किन्तु कुछ लोग बुरे होते हैं तब अच्छाई के लिए कुछ सोचना पड़ता है । संसार का कोई ऐसा नियम नहीं है कि बुराई अच्छाई के कन्धे पर बैठकर चलती है । और अच्छाई को सामने आने के लिए भी बुराई का कंधा चाहिए। दोनों का गठबंधन है । ऐसा ही कोई योग है कि कोरी अच्छाई या कोरी बुराई कहीं नहीं मिलती। एक के सहारे दूसरे के दर्शन होते हैं ।
चंचलता बढ़ाने वाले इस युग ने स्थिरता का प्रश्न हमारे सामने उपस्थित किया । इस विक्षेप बढ़ाने वाले युग ने ही एकाग्रता और ध्यान का प्रश्न उजागर किया है । इसलिए वर्तमान युग को श्रेय देना चाहिए कि उसने हमारी विस्मृत विरासत का स्मरण दिलाया और भूली हुई निधि की स्मृति कराई | इस युग ने एकाग्रता का मूल्यांकन करना सिखाया । यह सच है कि वर्तमान युग की कमियां हो सकती हैं, किन्तु उन कमियों में से एक जो अच्छाई निकली है, उसके लिए वर्तमान युग को धन्यवाद ही देना होगा ।
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