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________________ वर्तमान युग में योग की आवश्यकता / १३९ कि वह दिन का आभास करा देता है । इसी प्रकार संक्रमण भी सुलभ हो गया है । दुनिया के किसी एक छोर में घटना घटती है, उसे दुनिया के दूसरे छोर तक पहुंचने में समय नहीं लगता । समाचार प्रेषण के विविध साधन और उनकी त्वरित गति ने इसमें आश्चर्यकारी सहयोग दिया है। इस संक्रमण की दुनिया में मनुष्य के मन का चंचल होना, ज्यादा सुख-दुख का अनुभव होना, एक सामान्य बात बन गई है। सामान्य घटना बन गई है। पुराने जमाने में गांव में भी यदि कोई घटना घटती तो वह सबको ज्ञात नहीं हो पाती थी । महीना बीत जाते । कुछ भी पता नहीं चलता, सुख-दुःख भी नहीं होता । सुख-दुःख घटना से नहीं होता । सुख-दुःख होता है घटना का पता चलने से | उसके संवेदन से । घटना पदार्थ जगत् में घटित होती है । वह न सुख देती है और न दुःख देती है । सुख-दुख की अनुभूति तब होती है जब उसका पता चलता है और हमारा संवेद उससे जुड़ता है। जब तक ज्ञान न हो, तब तक चाहे अच्छी घटना घटे या बुरी घटना घटे, कोई अन्तर नहीं आता । वायुसेना का एक अधिकारी शिविर में ध्यान का अभ्यास करने आया । वह पूर्ण तन्मयता से इस प्रक्रिया में संलग्न था । पीछे से उसकी पदोन्नति भी हो गई और स्थानान्तरण भी हो गया। दोनों बातें उसके लिए सुखद थीं । पर जब ये दोनों बातें घटित हुईं, तब अधिकारी को कोई सुख की अनुभूति नहीं हुई | करने वालों ने किया। जो हुआ वह हुआ, सुख नहीं मिला कुछ भी, क्योंकि संबंधित व्यक्ति को यह अज्ञात था । जब यह घटना ज्ञात हुई, तब वह आनंदित हुआ, उसे सुख मिला। किसी की पदोन्नति होती है, मनचाही बात होती है तो निश्चित ही सुख होता है । किन्तु सुख तब होता है जंब पता चलता है | हम इन दोनों बातों को स्पष्ट समझें कि घटना में सुख-दुःख नहीं होता । सुख-दुःख होता है अनुभूति में । जब किसी बात का पता चलता है, उसका संवेदन होता है तब सुख या दुःख होता है । वर्तमान युग में इतने द्रुतगामी और संचरणशील साधन हैं कि घटना की स्थिति तत्काल फैल जाती है। विश्व में कहीं कुछ होता है, तत्काल उसका पता लग जाता है | पर मनुष्य का मन दुर्बल होता है । वह अनेक घटनाओं के साथ अपने को जोड़ लेता है । बहुत जल्दी जोड़ लेता है । चुनाव में एक व्यक्ति जीतता है, दूसरा हारता है । दोनों बातें एक साथ घटित होती हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003111
Book TitleMain Hu Apne Bhagya ka Nirmata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages274
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size12 MB
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