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तत्त्वज्ञान या जीवन दर्शन ? | १३५
आंखों को आंजने से दांत स्वस्थ रहते हैं । दांतों को धोने से कान स्वस्थ रहते हैं । सिर पर मालिश करने से पैरों को लाभ होता है और पैरों पर मालिश करने से आंखों की ज्योति बढ़ती है ।
इस प्रकार शरीरं में सैंकड़ों केन्द्र हैं, जिनको जानना बहुत लाभप्रद होता है । उनमें हाथ-पैर बहुत महत्त्वपूर्ण हैं |
हम विद्युत्-विज्ञान की दृष्टि से भी देखें । आज का शरीरशास्त्र मानता है कि शरीर की विद्युत का बहिःनिष्क्रमण मुख्यतः तीन स्थानों से होता है— हाथ की अंगुलियों से, पैरों की अंगुलियों से और आंखों से । जब शरीर रोगग्रस्त होता है तब रोग-ग्रस्त भाग पर अंगुलियां घुमाई जाती हैं । उससे विद्युत मिलती है और रोग शांत भी होता है । गुरु के चरणों में मस्तक रखने से उनके पैरों से निकलने वाली विद्युत का लाभ मिलता है | जब वे अपना हाथ भक्त के सिर पर रखते हैं तब अंगुलियों से निकलने वाली विद्युत भी मिलती है और जब वे शांत आंखों से भक्त को देखते हैं तब आंखों से निकलने वाली विद्युत भी प्राप्त होती है । भक्त तीनों ओर से लाभान्वित होता है । यह भी एक विज्ञान है ।
हर प्रवृत्ति के पीछे तत्त्वज्ञान होता है । पूरा दर्शन होता है | हम नहीं जानते, दर्शन को भूल जाते हैं और केवल यह समझ लेते हैं कि गुरु अपना बड़प्पन दिखाते हैं । जो जाता है उसके सिर पर हाथ रखकर अपना महत्त्व बताना चाहते हैं । हम मूल तथ्य को भूल जाते हैं ।
तत्त्वज्ञान से ही पूरा काम नहीं बनता । जानने मात्र से पूरा लाभ नहीं मिलता । उसका सार निकालना होता है, मक्खन निकालना होता है इसलिए कहा गया— हाथ का संयम करो, पैरों का संयम करो, दृष्टि का संयम करो | यही आचार दर्शन है | यह जीवन से जुड़ा हुआ है। हाथ में बिजली है, उसका संयम करो यानी उसे व्यर्थ मत जाने दो । हाथ को बिना प्रयोजन मत हिलाओ, जो छूने योग्य न हो उसे हाथ से मत छुओ, संयम करो ।
जो चैतन्य केन्द्र मस्तिष्क में हैं, वे हाथ में भी हैं । भावना के सभी केन्द्र हाथ में हैं।
जिन व्यक्तियों का ध्यान नहीं टिकता उनके लिए बताया गया है कि वे दाहिने पैर के अंगूठे पर ध्यान करें | ध्यान सधने लगेगा | यह है पैर का .
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