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________________ तत्त्वज्ञान या जीवन दर्शन ? / १३३ उदाहरण के द्वारा ठीक समझ में आ सकेगा । आगम की एक गाथा है हत्थसंजए पायसंजए वायसंजए संजइंदिए । अज्झप्परए सुसमाहिअप्पा //' इस गाथा में यह बताया गया है कि आदमी आध्यात्मिक कैसे हो सकता है ? अपनी आत्मा के भीतर वह कैसे प्रवेश कर सकता है ? इसके कुछेक उपायनिर्दिष्ट किए गए हैं । यदि तुम अध्यात्म में प्रवेश पाना चाहते हो तो हाथ का संयम करो, पैर का संयम करो, वाणी का संयम करो, इन्द्रियों का संयम करो। इस प्रक्रिया से तुम समाधिस्थ हो जाओगे, भीतर चले जाओगे | अब हम इसकी चार अनुयोगों के आधार पर व्याख्या को समझें । इसकी दार्शनिक व्याख्या करें । इस गाथा में तीन कर्मेन्द्रियों— हाथ, पैर और वाणीकी बात आ गयी। तीन कर्मेन्द्रियां हैं। अब हम कर्मेन्द्रियों और ज्ञानेन्द्रियों की दार्शनिक मीमांसा करें। हाथ और पैर की मीमांसा करें। फिर आगे चलें । वाणी का विश्लेषण करें। कहा गया- शब्द ब्रह्म है । जैन दर्शन में वाणी ( भाषा) पर बहुत विस्तार से विचार किया गया है । केवल वाक् पर बड़ा ग्रन्थ लिखा जा सकता है। भगवती, पन्नवणा तथा अन्य आगमों में वाक् पर बहुत वर्णन प्राप्त है । हाथ, पैर और वाणी - इन तीनों का दोहन करने में मनुष्य को पांचसात महीने लग सकते हैं । Jain Education International हम फिर ज्ञानेन्द्रियों की मीमांसा करें। इसकी मीमांसा में बहुत लंबा समय लग सकता है । फिर हम विज्ञान के संदर्भ में तथा नृवंश विद्या की दृष्टि से इस पर विचार करें । प्रश्न होगा कि मनुष्य जाति का विकास कैसे हुआ ? इसके उत्तर में अनेक उत्तर दिए जा सकते हैं । किन्तु नृवंश विद्या के आधार पर इसका जो उत्तर दिया गया, वह बहुत ही महत्त्वपूर्ण है । उसमें कहा गया है कि मनुष्य जाति के विकास का मूल आधार हैवाणी । पशुपक्षियों का विकास नहीं हुआ । गाय, भैंस और घोड़ा - ये हजारों वर्षों से समानरूप से रह रहे हैं । इनमें कोई परिवर्तन नहीं हुआ है। गधे, घोड़े, खच्चर कभी हड़ताल नहीं करते। वे सदा से भार ढो रहे हैं । और ढोते रहेंगे। क्यों ? इसलिए कि उनका विकास नहीं हुआ । उनमें भाषा नहीं है । बन्दर ने कभी For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003111
Book TitleMain Hu Apne Bhagya ka Nirmata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages274
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size12 MB
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