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दर्शन वही, जो जिया जा सके / १२५
प्रक्रिया है । हमारा आदर्श है वीतराग । हमें वीतराग बनता है। हमारा मार्ग है वीतरागता की दिशा में प्रस्थान । उसका एक महत्त्वपूर्ण पड़ाव है सत्यग्राही दृष्टिकोण | दूसरा पड़ाव है अल्पीकरण । इस प्रक्रिया से जीवन जीने वाला व्यक्ति न केवल दर्शन की चर्चा करेगा, न तत्त्ववाद में उलझेगा किन्तु दर्शन का जीवन जीने में और अपने पूरे व्यक्तित्व को वीतराग के समान बनाने में, वीतराग के साथ तादात्म्य स्थापित करने में तथा एक दिन वीतराग बन जाने में, पूरा सक्षम बन सकेगा ।
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