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१२० / मैं हूं अपने भाग्य का निर्माता
एक कहानी बड़ी मार्मिक है | बादशाह ने बीरबल से कहा- "तुम बड़े बुद्धिमान हो । तुम असम्भव को सम्भव बना सकते हो । मेरे मन का एक स्वप्न है, एक कल्पना है, उसे तुम साकार करो । मेरा स्वप्न है कि तुम हवाई महल बना दो ।'' बीरबल ने कहा-“जरूर बना दूंगा ।' बीरबल भी ऐसा निकला कि कोई काम कह दो, अस्वीकार करना जानता ही नहीं । बीरबल ने स्वीकार कर लिया । उसने चिड़ीमार बुलाए और कहा कि सौ-दो सौ तोते पकड़कर लाओ । उन्होंने दो-चार दिनों में सैकड़ों तोते ला दिए । बीरबल ने उनके लिए पिंजड़े बना दिए । बीरबल ने अपनी लड़की को बुलाया । वह बड़ी विदषी थी। उससे कहा- "इन तोतों को प्रशिक्षित करना है। ये आदमी की भाषा बोलना जानते हैं ।" उसने सब तोतों को प्रशिक्षित कर दिया ।
दो महीने का समय बीता । बीरबल ने बादशाह से कहा-"जहांपनाह ! हवाई महल तैयार हो रहा है | एक बार आपकी इच्छा हो तो चलकर देखें, कितना काम आगे बढ़ गया है ।'' बादशाह को बड़ा ताज्जुब हुआ । उसने सोचा, आकाशी महल कैसे बन सकता है ! आज का युग तो था नहीं कि अन्तरिक्ष में शटल जाए और स्टेशन स्थापित करे । कैसे बन सकता है ! बादशाह ने कहा-चलो, अभी चलो ।
- एक बड़े मैदान में बादशाह और बीरबल बैठ गए । सभी सामंत बैठ गए । इतने में सैकड़ों पिंजड़े लाकर रख दिए गए। पिंजड़ों के दरवाजे खुलते ही आकाश में तोते ही तोते छा गए । अब आवाज शुरू हुई—जल्दी ईटें लाओ, जल्दी पत्थर लाओ, चूना लाओ, हथोड़ा लाओ, मकान जल्दी बनाओ। चारों तरफ आकाश गूंज उठा । बादशाह ने पूछा- 'बीरबल ! वह हवाई महल है कहां ?' बीरबल ने कहा- सरकार ! मजदूर लगे हुए हैं । सारा काम हो रहा है ।' बादशाह ने कहा—'क्या ये ही हवाई महल बनाएंगे ?' बीरबल बोले---'जी हां, ये ही बनाएंगे । आकाश में उड़ने वाला ही हवाई महल बना सकता है।'
यदि दर्शन जीया नहीं जा सकता तो वह तोतों का हवाई महल बन जाता है, कोरा आकाशी महल बन जाता है । उसकी सारवत्ता समाप्त हो जाती है । किन्तु दर्शन हवाई महल नहीं होता, आकाशी उड़ान और आकाशी कल्पना नहीं होता । वह यथार्थ होता है. सत्य होता है और जीया जा सकता
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