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________________ श्वास लेते हैं, इसलिए जीते हैं। पुरानी पहचान है जीवित और मृत की कि जो श्वास लेता है वह जीता है और जो श्वास नहीं लेता वह मृत होता है । पर यह पहचान बहुत सच्ची नहीं है | बहुत आगे बढ़ गई है इसकी परीक्षा | किन्तु सामान्य धारणा तो यही रही है कि श्वास लेने वाला जीता है और श्वास नहीं लेने वाला मृत घोषित हो जाता है । आश्चर्य है कि हम श्वास को जानते हैं किन्तु प्राण को नहीं जानते । क्या हर आदमी श्वास से ही जीता है ? अगर हर आदमी श्वास से ही जीता तो लोहार की धोंकनी कितना तेज श्वास लेती है, जीवित हो जाती, पर वह जीती नहीं है। कुछ दिन पहले अचानक एक मुनि अस्वस्थ हो गये । डॉक्टर आया । उसने ऑक्सीजन देना शुरू किया | अगर ऑसीजन से जीवन चलता तो मुनि जी जाते । पर वे जीए नहीं, मर गए | कोई भी आदमी श्वास से नहीं जीता । यह तो जीवन का एक बाहरी लक्षण है । पता चलता है कि आदमी जीता है किन्तु श्वास से नहीं जीता | जिससे जीता है वह है प्राणशक्ति । हम श्वास को जानते है, प्राण को नहीं जानते । हम स्थूल को जानते हैं, सूक्ष्म को नहीं जानते हैं । स्थूल शरीर को जानते हैं, सूक्ष्म शरीर को नहीं जानते । श्वास स्थूल है, प्राण सूक्ष्म है । हम श्वास को जानते हैं, प्राण को नहीं जानते । श्वास के साथ प्राण भीतर जाता है । वह प्राण मनुष्य को जीवित बनाए हुए है । अगर प्राण की शक्ति न हो तो श्वास कितना ही भीतर जाए आदमी जीयेगा नहीं, मर जाएगा । हमें जिलाने वाली है प्राण की शक्ति, न कि श्वास की शक्ति । ___एक आश्चर्य है कि हम अवयवों को जानते हैं किन्तु अवयवों के मूल्यों को नहीं जानते । मस्तिष्क, हाथ, पैर आदि अवयव हैं | हमारे शरीर में ऐसे और भी छोटे-मोटे हज़ारों अवयव हैं, ग्रंथियां हैं, रीढ़ की हड्डी है, नाड़ीसंस्थान है । हम इनको जानते हैं किन्तु इनके मूल्यों को नहीं जानते । आज का डॉक्टर, आज का शरीरशास्त्री प्रत्येक अवयव को जानता है और उसके फंक्शन को भी जानता है । एनोटोमी और फिजियोलॉजी—दोनों का बहुत विकास हुआ है और दोनों को वह बहुत अच्छी तरह से जानता है । उनके व्यावहारिक मूल्यों को जानता है, किन्तु उनके आध्यात्मिक मूल्यों को वह भी नहीं जानता । जीवन के बारे में इसीलिए हमारी दृष्टि स्पष्ट नहीं होती Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003111
Book TitleMain Hu Apne Bhagya ka Nirmata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages274
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size12 MB
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