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२ / मैं हूं अपने भाग्य का निर्माता .. हम शरीर को जानते हैं, इस स्थूल शरीर को जानते हैं । यह शरीर जो पुरानी भाषा में सात धातुओं का शरीर | आज की वैज्ञानिक भाषा में कुछ रसायनों का बना हुआ शरीर । इस शरीर, स्थूल शरीर को हम जानते हैं, किन्तु इस स्थूल शरीर के भीतर सूक्ष्म शरीर है, उसे हम नहीं जानते | जीवन का पाठ तब अधूरा रह जाता है जब केवल इस शरीर को जानते हैं और इस शरीर के भीतर जो शरीर है उसे नहीं जानते । लोग कहते हैं
आत्मा को हम नहीं जानते, आत्मा को हम नहीं मानते । कोई आश्चर्य नहीं होता । आत्मा जैसे सूक्ष्म तत्त्व को कोई नहीं जानता तो कोई आश्चर्य की बात नहीं है । आश्चर्य की बात तो यह है कि जो सूक्ष्म शरीर को निरंतर सक्रिय बनाए हुए है, उस शरीर को भी हम नहीं जानते । जहां से प्रकाश, गति, सक्रियता आ रही है, हर श्वास का स्पंदन, हर हृदय की धड़कन इसके माध्यम से हो रही है और मस्तिष्क की हर कोशिका जिसके कारण सक्रिय बनी हुई है, उसको हम नहीं जानते । उस मूलधारा को नहीं जानते, यह हमारे लिए बहुत आश्चर्य की बात है | जब सूक्ष्म शरीर को नहीं जानते तो फिर
आत्मा को जानने का प्रश्न ही नहीं होता । मैं तो मानता हूं कि आत्मा को जानने वाले लोग तो कम होंगे, कम होते हैं और कम हुए होंगे किन्तु मानने वाले लोग ज्यादा हैं । वे मानकर चलते हैं, जानते नहीं हैं । आत्मा की बात छोड़ दें । विज्ञान ने जो यह खोजें की उससे पहले धार्मिक लोग भी सूक्ष्म शरीर के बारे में बहुत रस नहीं लेते थे, नहीं जानते थे । विज्ञान की खोजों के द्वारा, उस सूक्ष्म संवेदनशील फोटोग्राफी के द्वारा, हाईफ्रिक्वेंसी कैमरों के द्वारा जब भीतर में से कुछ रश्मियों के विकिरणों को पकड़ा गया तो एक कल्पना हुई कि जिसे हम शरीर मानते हैं यह शरीर ही नहीं, शरीर के भीतर भी कुछ और बात है । तब सूक्ष्म शरीर को पकड़ा गया ।
परामनोविज्ञान के क्षेत्र में यह बहुत स्पष्ट हो गया है कि हमारा शरीर, स्थूल शरीर बहुत कम शक्ति वाला है । मूल शक्ति का संचालन करने वाला है सूक्ष्म शरीर । प्राचीन भाषा में उसे तेजस शरीर कहा गया है । इस शरीर के भीतर एक अग्नि का शरीर है, एक विद्युत् का शरीर है और यह हमारी सारी गतिविधि को संचालित कर रहा है | __ हम जीते हैं, इस शरीर में जीते हैं और श्वास के द्वारा जीते हैं । हम
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