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४ / मैं हूं अपने भाग्य का निर्माता कि हम प्रत्येक अवयव के क्रियात्मक पक्ष को जान जाते हैं, पर इसके आध्यात्मिक पक्ष को नहीं जानते ।
लीवर ठीक काम करता है, डॉक्टर देख लेता है । हृदय की गति ठीक होती है आदमी जान लेता है । मस्तिष्क ठीक काम करता है, जान लेता है। थाइराइड या पिच्यूटरी ठीक काम कर रही है वह जान लेता है किन्तु एक आदमी शरीर से स्वस्थ है, प्रत्येक अवयव ठीक काम कर रहा है किन्तु मानसिक रोग से पीड़ित है, न जाने कितनी मानसिक अस्वस्थताएं हैं, वह नहीं जानता । एक आदमी अच्छा लगता है तब तक, जब तक उसको छेड़ो नहीं । जैसे ही किसी ने छेड़ा कि वह गुस्से में आ जाता है | आदमी इतना गुस्सैल, इतना कपटी, इतना लोभी और इतना दंभी क्यों होता है ? इसका कोई पता नहीं चलता । और इसलिए नहीं चलता कि रसायनों को हम जानते है, किन्तु रसायनों की क्रिया को हम नहीं जानते । हम बाहरी रसों को जानते हैं । नींबू खट्टा होता है, चीनी मीठी होती है, इस बात को जानते हैं । नींबू खाओ तब तक खट्टा लगता है । खाने के बाद जब भीतर जाता है तो खटाई क्षार में बदल जाती है । नींबू अम्लता पैदा नहीं करता और चीनी अम्लता पैदा करती है । चीनी मीठी लगती है, खाने के बाद अम्लता पैदा करती है | चीनी खाने वाले को खट्टी डकारें आ सकती हैं, नींबू खाने वाले को आज तक कभी खट्टी डकारें नहीं आयीं । इस बात को भी हम नहीं जानते । हम सचाई को बहुत कम जानने का यल करते हैं । आदमी सोचता तो यह है कि जितनी चीनी खा लें, उतना अच्छा है किन्तु अम्लता, अपच, खट्टी डकारें और अनेक व्याधियां चीनी के कारण होती हैं | सचाई तो यह है कि जितनी बीमारियां हैं, वे सब अम्लता की बीमारियां हैं । यदि अम्लता न हो तो बीमारी हो नहीं सकती । अम्लता बीमारी को पैदा करती है।
हम रसों को भी पूरा नहीं जानते । जैविक रसायनों को तो जानते ही नहीं । मनुष्य का स्वभाव क्यों बनता है, यह सारा रसायनों के द्वारा जाना जा सकता है । जिस प्रकार का केमिकल होगा, जिस प्रकार का जैविक रसायन होगा, उसी प्रकार का स्वभाव निर्मित होगा । स्वभाव के पीछे और भी कई कारण हो सकते हैं । संस्कार भी एक कारण है । जो संस्कार जम जाता है, आदमी का वैसा स्वभाव बन जाता है । बहुत बड़ी बात है—संस्कार ।
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