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दर्शन वही, जो जिया जा सके
जीवन-विकास की प्रक्रिया में एक मार्ग का चुनाव बहुत महत्त्वपूर्ण होता है । मार्ग के बिना कहीं पहुंचा नहीं जा सकता । जीवन की यात्रा में मार्ग का निर्धारण होता है । कोई भी व्यक्ति कहीं भी पहुंचना चाहता है, सबसे पहले मार्ग की खोज करता है, चाहे कांकरोली से उदयपुर जाना हो, जोधपुर जाना हो, जयपुर जाना हो, पहले मार्ग का निश्चय करता है | मार्ग के बाद ही यात्रा का प्रारम्भ होता है । जीवन विकास की यात्रा में मार्ग का चुनाव करना बहुत जरूरी होता है ।
__ जैन दर्शन ने एक निश्चित मार्ग का प्रतिपादन किया । उसका पहला सूत्र बनता है, आदर्श का निर्धारण | आदर्श का निर्धारण किये बिना कोई भी व्यक्ति आंतरिक विकास की यात्रा में सफल नहीं हो सकता । एक निश्चित आदर्श सामने रखना होता है | जब आदर्श का पता नहीं होता, यात्रा प्रारम्भ ही नहीं होती । और न कोई मार्ग बनता है |
एक व्यक्ति आया स्टेशन पर और स्टेशन मास्टर से कहा- टिकट दो । स्टेशन मास्टर ने पूछा- कहां जाना चाहते हो ? व्यक्ति ने कहामैं अपनी ससुराल जाना चाहता हूं । ससुराल की टिकट दो । स्टेशन मास्टर ने कहा- कौन-सा गांव ? व्यक्ति ने कहा— गांव का पता नहीं । मुझे तो अपनी ससुराल जाना है । वहीं की टिकट दो ।।
कैसे टिकट मिलेगी जब कोई पता नहीं है कि कहां जाना है ! निश्चय करना होता है कि मुझे कहां जाना है ! मुझे कहां यात्रा करनी है ! मुझे क्या बनना है ! इस दृष्टि से सबसे पहले एक आदर्श का चुनाव करना होता है । जैन दर्शन ने कहा— जीवन-विकास के लिए आदर्श हो सकता है वीतराग । वीतराग हमारा आदर्श है । मुझे वीतराग बनना है । न कोई व्यक्ति आदर्श
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