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________________ कुंडलिनी-जागरण : अवबोध और प्रक्रिया । ११३ दीर्घश्वास-प्रेक्षा, समवृत्ति-श्वास प्रेक्षा-- ये मन्द प्राणायाम हैं | इनके साथ ध्यान का प्रयोग भी है । मैं मानता हूं कि कोई भी प्रयोग ध्यान के बिना नहीं करना चाहिए । ध्यान के साथ किया जाने वाला प्रयोग शीघ्र सफल होता है, लाभप्रद होता है | मंद प्राणायाम को यदि बढ़ाते-बढ़ाते घंटा-आधा घंटा भी किया जाए तो कोई हानि नहीं होती । लाभ ही होता है । मंद श्वास हमारा सहज श्वास है । यही दीर्घ श्वास है । यह अनिष्ट नहीं करता । यह स्वाभाविक प्रक्रिया है । लंबा श्वास स्वाभाविक है छोटा स्वास कृत्रिम है। समवृत्ति श्वास-प्रेक्षा भी मंद प्राणायाम का एक अंग है । इसे एक साथ लंबे समय तक नहीं करना चाहिए । धीरे-धीरे कालमान को बढ़ाना चाहिए । इसे पन्द्रह मिनट से ज्यादा नहीं करना चाहिए । यह कालमान भी एक साथ नहीं, धीरे-धीरे बढ़ाना चाहिए । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003111
Book TitleMain Hu Apne Bhagya ka Nirmata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages274
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size12 MB
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