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कुंडलिनी-जागरण : अवबोध और प्रक्रिया | १११ कुंडलिनी-जागरण की इस प्रक्रिया में धैर्य की बात बहुत महत्त्वपूर्ण है । समें साधना-काल लंबा होता है । उस दीर्घकाल को धैर्य से ही पूरा किया ना सकता है । धीरे-धीरे साधना परिपक्व होती है और जब तैजस जागरण की प्रक्रिया प्रारम्भ हो जाती है, तब सारे खतरे टल जाते हैं । कृष्ण और अर्जुन
पूछा जाता है कि कुंडलिनी-जागरण वास्तविकता है या कोरा सम्मोहन ?
कुंडलिनी-जागरण और सम्मोहन में गहरा संबंध है | कुंडलिनी जागरण आकस्मिक भी किया जा सकता है । पर उसकी स्थिति अल्पकालीन होती ई। कोई व्यक्ति अपने तपोजन्य बल से किसी में शक्ति का संचार कर देता है। यह हो सकता है । जैसे कोई हृदयरोग से ग्रस्त है, मरणासन्न है, डॉक्टर उसे आक्सीजन देकर कुछ सक्रिय करते हैं । पर उस ऑक्सीजन के सहारे तो वह जी नहीं सकता | वह अपनी शक्ति के सहारे ही जी सकता है। डॉक्टर एक बार उसकी प्राणशक्ति को धक्का देता है । यदि जीवन शक्ति बची हुई है, वास्तविक मृत्यु नहीं हुई है तो वह जी उठेगा । जब ऑक्सीजन प्राप्त नहीं होती है तो डॉक्टर जोर से फूंक मारकर भी रोगी को सक्रिय कर देता है । पह कृत्रिम श्वास भी काम तो करता ही है ।
एक महिला डॉक्टर के पास जाकर बोली-डॉक्टर साहब ! मेरे बच्चे की हालत कैसी है ? डॉक्टर बोला—उसे नकली श्वास दी जा रही है । महिला ने कहा-नकली क्यों, मैं असली श्वास के पैसे देने के लिए तैयार हूं | आप नकली श्वास बंद करें और असली श्वास दें। जितने रुपये लगेंगे, अभी दे दूंगी। ___मैं मानता हूं शक्तिपात आदि की सारी प्रक्रियाएं नकली श्वास की प्रक्रियाएं हैं । एक कोई समर्थ व्यक्ति अपनी शक्ति से दूसरे को प्रभावित कर उसकी शक्ति को जगा देता है । वह शक्ति जाग जाती है, किन्तु टिकती नहीं । जब तक उस शक्ति का आवेग रहता है, जब तक व्यक्ति उस शक्ति से आविष्ट रहता है, तब तक वह शक्ति काम करती है और जैसे ही आवेश समाप्त होता है, आदमी शक्तिशून्य हो जाता है।
यह नियम सब पर लागू होता है । फिर चाहे कृष्ण ने अर्जुन की कुंडलिनी
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