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कुंडलिनी-जागरण : अवबोध और प्रक्रिया / १०९ हैं । रंगों का संबंध चित्त के साथ गहरा होता है । जब उसकी प्रक्रिया से साधक गुजरता है तब शक्ति का सहज जागरण होता है।
प्रेक्षाध्यान की पूरी प्रक्रिया कुंडलिनी के जागरण की प्रक्रिया है । लाभ : अलाभ
कुंडलिनी-जागरण के लाभ भी हैं और अलाभ भी हैं । कुछ लोगों ने बिना किसी संरक्षण के स्वतः कुंडलिनी जागरण की दिशा में पादन्यास किया | पूरी युक्ति हस्तगत न होने के कारण उनका मस्तिष्क विक्षिप्त हो गया । इसके अतिरिक्त और अनेक खतरे सामने आते हैं | प्रश्न होता है.... क्या इन खतरों से बचा जा सकता है ? बचने के उपाय क्या हैं ? ।
शक्ति हो और खतरा न हो, यह कल्पना नहीं की जा सकती । जिसमें तारने की शक्ति होती है, उसमें मारने की भी शक्ति होती है । जिसमें मारने की शक्ति होती है, उसमें तारने की भी शक्ति होती है । शक्ति है तो तारना
और मारना दोनों साथ-साथ चलते हैं । कुंडलिनी के साथ खतरे भी जुड़े हुए हैं । विद्युत् लाभदायी है तो खतरनाक भी है । विद्युत् के खतरों से सभी परिचित हैं । बिजली के तार खुले पड़े हैं । कोई छुएगा तो पहले झटका लगेगा, छूने वाला गिर जाएगा या गहरा शॉक लगा तो मर भी जाएगा । खतरा निश्चित
सोचें, प्राण-शक्ति का प्रवाह ऊपर जा रहा है। उसकी ऊर्ध्वयात्रा हो रही है । प्राण का प्रवाह सीधा जाना चाहिए सुषुम्ना से, पर किसी कारणवश वह चला गया पिंगला में तो गर्मी इतनी बढ़ जाएगी कि साधक सहन नहीं कर पाएगा । वह बीमार बन जाएगा और जीवन भर उस बीमारी को उसे भोगना पड़ेगा । उसकी चिकित्सा असंभव हो जायेगी । प्राणशक्ति एक साथ इतनी जाग गई कि साधक में उसे सहन करने की क्षमता नहीं है तो वह पागल हो जाएगा । ऐसा होता है । एक साथ होने वाला शक्ति का जागरण अनिष्टकारी होता है । इसीलिए कहा जाता है कि तैजस शक्ति का विकास करना चाहे, कुंडलिनी शक्ति का विकास करना चाहे तो उसे धीरे-धीरे विकसित करना चाहिए । इस विकास की प्रक्रिया के अनेक अंग हैं । हठयोग में 'कायसिद्धि' को साधना का प्रारंभिक बिन्दु माना है । यह बहुत महत्त्वपूर्ण
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