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१०८ / मैं हूं अपने भाग्य का निर्माता कोई निश्चित नियम नहीं बनाया जा सकता कि अमुक के द्वारा ही कुंडलिनी जागती है और अमुक के द्वारा नहीं जागती । कभी-कभी ऐसा भी होता है कि व्यक्ति गिरा, मस्तिष्क पर गहरा आघात लगा और कुंडलिनी जाग गई। उसकी अतीन्द्रिय चेतना जाग गई । कुंडलिनी के जागने के अनेक कारण हैं । ओषधियों के द्वारा भी कुंडलिनी जागृत होती है । अमुक-अमुक वनस्पतियों के प्रयोग से कुंडलिनी के जागरण में सहयोग मिलता है । तिब्बत में तीसरे नेत्र के उद्घाटन में वनस्पतियों का प्रयोग भी किया जाता था । पहले शल्यक्रिया करते फिर वनोषधियों का प्रयोग करते थे । ओषधियों का महत्त्व सभी परंपराओं में मान्य रहा है । प्रसिद्ध सूक्त है- अचिन्त्यो मणिमंत्रौषधीनां प्रभाव:-मणियों, मंत्रों और औषधियों का प्रभाव अचिन्त्य होता है । मंत्रों के द्वारा भी कुंडलिनी को जगाया जा सकता है तथा विविध मणियों, रत्नों के विकिरणों के द्वारा और ओषधियों के द्वारा भी उसे जागृत किया जा सकता
कुंडलिनी को जगाने के अनेक हेतु हैं । उनमें प्रेक्षाध्यान भी एक सशक्त माध्यम बनता है कुंडलिनी को जगाने में, तैजस शक्ति को जगाने में । दीर्घ श्वास प्रेक्षा की प्रक्रिया कुंडलिनी के जागरण की प्रक्रिया है । यदि कोई व्यक्ति प्रतिदिन एक घंटा दीर्घश्वास प्रेक्षा का अभ्यास करता है तो कुंडलिनी-जागरण का यह शक्तिशाली माध्यम बनता है । अन्तर्यात्रा भी उसके जागरण का रास्ता है । सुषुम्ना के मार्ग से चित्त को शक्तिकेन्द्र से ज्ञानकेन्द्र तक और ज्ञानकेन्द्र से शक्तिकेन्द्र तक ले जाना-लाना भी कुंडलिनी को जागृत करता है । चित्त की यह यात्रा बहुत महत्त्वपूर्ण माध्यम है।
तीसरा माध्यम है— शरीर प्रेक्षा । शरीर-दर्शन का अभ्यास जब पुष्ट होता है तब तैजस शक्ति का जागरण होता है ।
चौथा माध्यम है—-चैतन्य केन्द्र प्रेक्षा । चैतन्य केन्द्रों को देखने का अर्थ है कुंडलिनी के सारे मार्गों को साफ कर देना ।
चैतन्य केन्द्रों के सारे अवरोध समाप्त हो जाने पर कुंडलिनी-जागरण सहज हो जाता है ।
पांचवां माध्यम है— लेश्या ध्यान । यह सबसे शक्तिशाली साधन है कुंडलिनी के जगाने का । रंग हमारे भावतंत्र को अत्यधिक प्रभावित करते
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