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कुंडलिनी-जागरण : अवबोध और प्रक्रिया | १०७ उसका स्पर्श मिलने से कुंडलिनी शक्ति को जगाने में सहयोग मिलता है | उसको अनुभव होने लग जाता है । वह क्षणिक अनुभव विद्युत जागरण जैसा होता है । गुरु-कृपा से मिलने वाला यह क्षणिक अनुभव या जागरण क्षणिक ही होता है, स्थायी नहीं होता । एक क्षण में अपूर्व अनुभव हुआ और दूसरे क्षण में वह समाप्त हो गया । इलेक्ट्रोड लगाने से क्षणिक अनुभव होता है
और उसे हटा देने से वह अनुभव भी समाप्त हो जाता है। वैसा ही यह अनुभव होता है । गुरु का आशीर्वाद मिला, अनुग्रह मिला, कृपा मिली तो एक बार झटका जैसा लगा, किन्तु क्षण भर बाद वह समाप्त हो जाता है । अन्ततः कुंडलिनी का जागरण साधक को स्वयं ही करना पड़ता है । उसे प्रयास करना होता है । गुरु-कृपा का इतना-सा लाभ होता है कि एक बार जब अनुभव हो जाता है, फिर चाहे वह अनुभव क्षणिक ही क्यों न हो, तो वह आगे के अनुभव को जगाने के लिए प्रेरक बन जाता है | इतना लाभ अवश्य होता है । यह अपने आप में बहुत मूल्यवान है । यही शक्तिपात है । पर जैसेजैसे शिष्य, गुरु या उस व्यक्ति से दूर जाएगा, वह शक्ति धीरे-धीरे कम होती जाएगी । आखिर ली हुई शक्ति कितने समय तक टिक सकती है ! अपनी शक्ति को ही जगाना पड़ता है । वही स्थायी बनी रह सकती है । अपनी शक्ति को जगा लेने पर भी अवरोध आ सकते हैं । किसी व्यक्ति ने उस जागृत शक्ति से अनुपयुक्त काम कर डाला, तो वह शक्ति चली जाती है, क्षीण हो जाती है। कुंडलिनी का जागरण
प्रेक्षाध्यान से भी कुंडलिनी जाग सकती है । उसको जगाने के अनेक मार्ग हैं, अनेक उपाय हैं । संगीत के माध्यम से भी उसे जगाया जा सकता है | संगीत एक सशक्त माध्यम है कुंडलिनी के जागरण का । व्यायाम और तपस्या से भी वह जाग जाती है । भक्ति, प्राणायाम, व्यायाम, उपवास, संगीत, ध्यान आदि अनेक साधन हैं, जिनके माध्यम से कुंडलिनी जागती है । ऐसा भी होता है कि पूर्व संस्कारों की प्रबलता से भी कुंडलिनी जागृत हो जाती है और यह आकस्मिक होता है । व्यक्ति कुछ भी प्रयत्न या साधना नहीं कर रहा है, पर एक दिन उसे लगता है कि उसकी प्राणशक्ति जाग गई । इसलिए
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