SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 116
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १०६ / मैं हूं अपने भाग्य का निर्माता . प्रत्येक प्राणी की कुंडलिनी यानी तैजस शक्ति जागृत रहती है । अन्तर होता है मात्रा का | कोई व्यक्ति विशिष्ट साधना के द्वारा अपनी इस तैजस शक्ति को विकसित कर लेता है और किसी व्यक्ति को अनायास ही गुरु का आशीर्वाद मिल जाता है तो साधना में तीव्रता आती है और कुंडलिनी का अधिक विकास हो जाता है । वह अनुभव आगामी यात्रा में सहयोगी बन सकता है । बनता है यह जरूरी नहीं है । गुरु की कृपा ही क्यों, मैं मानता हूँ कि जिस व्यक्ति का तैजस शरीर जागत है उस व्यक्ति के सान्निध्य में जाने से भी दूसरे व्यक्ति की कुंडलिनी को, तैजस शरीर को उत्तेजना मिल जाती है और वह अर्द्धजागृत कुंडलिनी पूर्ण जागृत हो जाती है । प्रश्न है विद्युत् प्रवाहों का | 'क' और 'ख' दो व्यक्ति हैं । 'क' के विद्युत् प्रवाह बहुत सक्रिय हैं । 'ख' के विद्युत् प्रवाह कमजोर हैं । यदि 'ख' 'क' के पास जाता है तो 'क' के विद्युत् प्रवाह 'ख' को प्रभावित करेंगे और उसमें एक प्रकार के विद्युत् स्पंदन पैदा हो जाएंगे। एक बहुत आश्चर्य की बात है । एक व्यक्ति बहुत पहुंचे हुए योगी के पास गया । कुछ देर बैठा । उसने अनुभव किया कि उसकी कामवासना उभर रही है । वह हैरान हो गया । सन्निधि है परम योगी की । उसके पास जाने से कामवासना शान्त होनी चाहिए, पर वह उभर रही है । बहुत विचित्र बात है । यह अकारण नहीं है। इसका भी पुष्ट कारण है । वह योगी पहंचा हुआ है | उसका तैजस शरीर पूर्ण जागृत है | उसके उस शरीर से प्रतिक्षण विकिरण हो रहे हैं । वे बहुत प्रभावशाली हैं । वे विकिरण सामने वाले व्यक्ति में संक्रांत होते हैं और जब तैजस संक्रांत होता है तो वह सबसे पहले सक्रिय करता है जननेन्द्रिय को, क्योंकि वह स्थान है शक्ति का । उस शक्ति के स्थान को वह प्रकंपित करता है और वासना अचानक उभर आती है । बहुत खतरनाक मार्ग है यह । जननेन्द्रिय और तैजस शरीर का मार्ग सटा हुआ है । इतना सटा हुआ कि वह उसे प्रभावित कर देता है । गुरु-कृपा का इतना ही तात्पर्य है—उस व्यक्ति का सान्निध्य जिसका तैजस जागृत है | गुरु का अर्थ परम्परागत गुरु से नहीं है । जिस व्यक्ति की तैजस शक्ति विकसित है, उसके पास जाने से, उसके आशीर्वाद प्राप्त करने से, उसके हाथों का मस्तिष्क पर स्पर्श प्राप्त होने से या पृष्ठरज्जु पर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003111
Book TitleMain Hu Apne Bhagya ka Nirmata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages274
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy