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कुंडलिनी-जागरण : अवबोध और प्रक्रिया / १०५ कुंडलिनी : स्वरूप और जागरण
____कुंडलिनी-जागरण का प्रश्न शरीरों के साथ जुड़ा हुआ है । तीन शरीरों में जो मध्य का शरीर है, तैजस शरीर (सूक्ष्म शरीर) उसकी एक क्रिया का नाम है 'तेजोलब्धि' । हठयोग तंत्र में इसे 'कुंडलिनी' कहा गया है | कहींकहीं 'चित्शक्ति' कहा जाता है । जैन साधना पद्धति में इसे 'तेजोलब्धि' कहा जाता है । नाम का अन्तर है । कुंडलिनी के अनेक नाम हैं । हठयोग में इसके पर्यायवाची नाम तीस गिनाए गए हैं। उनमें एक नाम है 'महापथ' । जैन साहित्य में 'महापथ' का प्रयोग मिलता है । कुंडलिनी के अनेक नाम हैं । भिन्न-भिन्न साधना पद्धतियों में यह भिन्न-भिन्न नाम से पहचानी गई है । यदि इसके स्वरूपवर्णन में की गई अतिशयोक्तियों को हटाकर इसका वैज्ञानिक विश्लेषण किया जाए तो इतना ही फलित निकलेगा कि हमारी विशिष्ट प्राणशक्ति है । प्राणशक्ति का विशेष विकास ही कुंडलिनी का जागरण है | प्राणशक्ति के अतिरिक्त, तैजस शरीर के विकिरणों के अतिरिक्त कुंडलिनी का अस्तित्व वैज्ञानिक ढंग से सिद्ध नहीं हो सकता । मध्यकालीन साहित्य में अतिशयोक्तियों और रूपकों का उल्लेख अधिक मात्रा में प्राप्त होता है । उनकी भाषा के गहन जंगल में से मूल को खोज निकालना कठिनसा हो गया है । आज के चिन्तक उन सब अतिशयोक्तियों और रूपकों के चक्रव्यूह को तोड़कर यथार्थ को पकड़ने का प्रयास करते हैं । उनके प्रयास में कुंडलिनी का अस्तित्व प्रमाणित होता है, पर होता है वह सामान्य शक्ति के विस्फोट के रूप में | वह कुछ ऐसा आश्चर्यकारी तथ्य नहीं है, जिसे अमुक योगी ही प्राप्त कर सकते हैं, या जिसे अमुक अमुक योगियों ने ही प्राप्त किया है । यह सर्वसाधारण है | कोई भी प्राणी ऐसा नहीं है, जिसकी कुंडलिनी जागृत न हो । वनस्पति के जीवों की भी कुंडलिनी जागृत है । हर प्राणी की कुंडलिनी जागृत होती है। यदि वह जागृत न हो तो वह चेतन प्राणी नहीं हो सकता । वह अचेतन हो सकता है । जैन आगम ग्रन्थों में कहा गया--- चैतन्य (कुंडलिनी) का अनन्तवां भाग सदा जागृत रहता है । यदि यह भाग भी आवृत्त हो जाए तो जीव अजीव बन जाए, चेतन अचेतन हो जाए। चेतन और अचेतन के बीच यही तो एक भेद-रेखा है ।
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