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१०४ / मैं हूं अपने भाग्य का निर्माता
स्पन्दन संक्रान्त होते हैं तैजस शरीर में और वे स्पन्दन फिर संक्रान्त होते हैं स्थूल शरीर में । यहां वे पूरे प्रकट होते हैं ।
__इस प्रकार हमारे पूरे जीवन का संचालन हो रहा है सूक्ष्मतर शरीर (कर्म शरीर) के द्वारा । उसका निर्देश क्रियान्वित हो रहा है सूक्ष्म शरीर (तेजस शरीर) में और तैजस शरीर की प्रेरणा से संप्रेषित हो रहा है यह स्थूल शरीर । इसलिए हमारी प्रवृत्ति का मूल इस स्थूल शरीर में नहीं खोजा जा सकता | हमारी प्रवृत्ति का मूल खोजा जा सकता है सूक्ष्म शरीर में । सारी क्रियाएं, सारी घटनाएं सबसे पहले सूक्ष्म शरीर में घटित होती हैं, उत्पन्न होती हैं और फिर स्थूल शरीर से प्रकट होती हैं | स्थूल शरीर उन क्रियाओं या घटनाओं का उत्पादक नहीं, केवल उनको अभिव्यक्ति देने वाला माध्यम है । आज आदमी बीमार होता है और हम कहते हैं, आज अमुक बीमार हो गया । उसकी बीमारी पांच-चार महीनों पूर्व सूक्ष्म शरीर में आ चुकी थी। आज वह स्थूल शरीर में उतरी है | इसलिए हम कह रहे हैं अमुक आज बीमार हो गया। विज्ञान ने इस दिशा में कदम आगे बढ़ाए हैं । स्थूल शरीर में अभिव्यक्त होने वाली बीमारी की भविष्यवाणी महीनों पहले करने में वह सफल हो रहा है । ऐसे यंत्र बन चुके हैं । वह दिन भी दूर नहीं जब महीनों बाद घटित होने वाली मृत्यु की भविष्यवाणी की जा सकेगी । यह सारा सूक्ष्म, सूक्ष्मतर शरीर के आधार पर ही किया जा सकता है ।
देवता की जब मृत्यु होने वाली होती है, तब कुछ परिवर्तन घटित होते हैं । पहला परिवर्तन है.--- छह महीने पहले उसका आभामंडल क्षीण होने लग जाता है । दूसरा परिवर्तन है... उसकी माला जो सदा विकस्वर रहती है, वह म्लान होने लग जाती है । तीसरा परिवर्तन है— उसका आसन प्रकम्पित हो जाता है । आभामंडल की क्षीणता, माला की म्लानता, आसन का प्रकम्पन-- ये सारे लक्षण उसके मौत के सूचक होते हैं । मृत्यु की सूचना सूक्ष्मतर शरीर में पहले ही अंकित हो जाती है और उसी के फलस्वरूप ये सारी बातें होती हैं । स्थूल शरीर में मौत का प्रकम्पन बाद में होता है । और जब उसमें होता है तभी हम कहते हैं, अमुक मर गया, अमुक की मौत हो गई।
तीनों शरीरों का सामंजस्य है । तीनों एकसूत्रता में जुड़े हुए हैं और अपना-अपना कार्य संपादित कर रहे हैं ।
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