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________________ कुंडलिनी-जागरण : अवबोध और प्रक्रिया | १०३ संचालित है ? वह प्राणधारा को प्रवाहित अपने आप कर रहा है या किसी के द्वारा प्रेरित होकर कर रहा है ? यदि अपने आप कर रहा है तो तैजस शरीर जैसा मनुष्य में है वैसा पश में भी है, पक्षियों में भी है और छोटे सेछोटे प्राणी में भी है । एक भी प्राणी ऐसा नहीं है, जिसमें तैजस शरीर सूक्ष्म शरीर न हो । वनस्पति में भी तैजस शरीर है, प्राण-विद्युत है । वनस्पति में भी ओरा होता है, आभामंडल होता है । वह आभामंडल इस स्थूल शरीर से निष्पन्न नहीं है । आभामंडल (ओरा) उस सूक्ष्म शरीर- तैजस शरीर का विकिरण है । वनस्पति का अपना आभामंडल होता है । हर प्राणी का अपना आभामंडल होता है। मनुष्य का भी अपना आभामंडल होता है। प्रश्न होता है, यह रश्मियों का विकिरण क्यों होता है ? यदि तैजस शरीर का कार्य केवल विकिरण करना ही हो तो मनुष्य के साथ यह क्यों कि वह इतना ज्ञानी, इतना शक्तिशाली और इतना विकसित तथा एक अन्य प्राणी इतना अविकसित क्यों | यह सब तैजस शरीर का कार्य नहीं है । तैजस शरीर के पीछे भी एक प्रेरणा है सूक्ष्म शरीर की । वह सूक्ष्म शरीर है कर्म शरीर । जिस प्रकार के हमारे अर्जित कर्म और संस्कार होते हैं, उनका जैसा स्पंदन होता है, उन स्पंदनों से स्पंदित होकर तैजस शरीर अपना विकिरण करता है । तैजस शरीर जिस प्रकार की प्राणधारा प्रवाहित करता है, वैसी प्रवृत्ति स्थूल शरीर में हो जाती है। तीनों शरीरों की एक श्रृंखला है-- स्थूल शरीर, सूक्ष्म शरीर और सूक्ष्मतर शरीर | स्थूल शरीर यह दृश्य शरीर है । सूक्ष्म शरीर है तैजस शरीर और सूक्ष्मतर शरीर है कर्म शरीर, कार्मण शरीर । कुछ लोगों ने इसका विस्तार कर सात शरीर भी माने हैं। विस्तार भी हो सकता है । किन्तु इन तीन शरीरों की एक व्यवस्थित श्रृंखला है--- स्थूल, सूक्ष्म और सूक्ष्मतर । इन तीनों शरीरों के माध्यम से सारी प्रवृत्तियों का संचालन होता है | प्राणी की मूलभूत उपलब्धियां तीन हैं— चेतना (ज्ञान), शक्ति और आनन्द । चेतना का तारतम्य—अविकास और विकास, शक्ति का तारतम्य—अविकास और विकास, आनन्द का तारतम्य अविकास और विकास—यह सारा इन शरीरों के माध्यम से होता है । चेतना, शक्ति और आनन्द की अभिव्यक्ति के माध्यम हैं ये शरीर | कर्म शरीर में अभिव्यक्ति के जितने स्पन्दन होते हैं उतने ही Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003111
Book TitleMain Hu Apne Bhagya ka Nirmata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages274
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size12 MB
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