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मन की शान्ति / ९३
चिकित्सा के क्षेत्र में काम करने वाले हैं, अहिंसा के क्षेत्र में काम करने वाले हैं और जो विश्वशान्ति की चर्चा और परिक्रमा करने वाले हैं, उन लोगों के लिए तो यह बहुत जरूरी है कि वे उन सारे हेतुओं को जानें और फिर समाधान की बात करें ।
एक बहुत बड़ा हेतु है कालचक्र, जो मनुष्य के साथ-साथ चलता है । काल से जब स्थूल शरीर में परिवर्तन होता है, तो बहुत स्वाभाविक है कि हमारे भाव चक्र में भी परिवर्तन होगा । भाव में परिवर्तन होता है, यह अब केवल पौराणिक मान्यता ही नहीं है, वैचारिक मान्यता भी बन गई है । पुराने ग्रन्थों में कुछ तिथियों का विशेष चुनाव किया गया- पंचमी, अष्टमी, चतुर्दशी, अमावस्या और पूर्णिमा । इन तिथियों के चयन के बारे में हमारे सामने बहुत प्रश्न आते हैं । अष्टमी को विशेष धर्म करना चाहिए, सप्तमी को नहीं, ऐसा क्यों ? सप्तमी ने क्या बिगाड़ा और अष्टमी ने क्या भला कर दिया ? ऐसा क्यों करना चाहिए ? बहुत सारे प्रश्न आते हैं । और शायद समाधान भी समुचित नहीं दिया जाता । किन्तु अब ज्योतिर्विज्ञान और वैज्ञानिक अध्ययनों और विश्लेषणों के बाद, इसका बहुत अच्छा उत्तर दिया जा सकता है ।
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चन्द्रमा का हमारे मन के साथ में बहुत गहरा संबंध है । ज्योतिर्विज्ञान में भी है। किसी आदमी की कुंडली देखी जाती है तो मन का स्थान चन्द्रमा से देखा जाता है | चन्द्र कैसा है ? चन्द्रमा अच्छा है कुण्डली में तो इसका मन बहुत शान्त रहेगा स्वच्छ रहेगा । चन्द्रमा अच्छा नहीं है तो पागल बनेगा, यह भविष्यवाणी करने में कोई कठिनाई नहीं है । चन्द्रमा के स्थान के आधार पर मन की यह मीमांसा की जा सकती है । मन का और चन्द्रमा का बहुत गहरा संबंध है ।
हमारे शरीर में जल का हिस्सा बहुत बड़ा है। आपको तो यह शरीर ठोस लग रहा है, पर ठोस कहां है ? पानी ही पानी है। सत्तर- अस्सी प्रतिशत तो हमारे शरीर में पानी है । और भाग तो बहुत थोड़ा है । पानी का चन्द्रमा के साथ संबंध है । समुद्र के ज्वार-भाटे के साथ चन्द्रमा का संबंध है । हमारे " मन और शरीर का भी चन्द्रमा के साथ संबंध है । मन का ज्वार-भाटा भी चन्द्रमा के साथ आता है। केवल समुद्र में ही ज्वार-भाटा नहीं आता, मन
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