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९२ / मैं हूं अपने भाग्य का निर्माता ग्रामीण के उस आकस्मिक व्यवहार को वह समझ नहीं सका । ग्रामीण बोला"क्षमा करें, मैं जानता हूं कि आपको कष्ट हो रहा है, पर मैं नहीं चाहता कि मेरी पत्नी के गुप्त समाचार आपके कानों तक पहुंचे । इसलिए मैंने यह किया है । आप आगे भी पढ़ें।"
वह ग्रमीण ही तो था । वह यह नहीं समझ सका कि पढ़ी हुइ बात कानों तक पहुंचे या नहीं, कोई अन्तर नहीं पड़ता | उसमें इतना विवेक नहीं था । वह मात्र इतना ही जानता था कि मेरी पत्नी की गुप्त बात कोई सुन न ले ।
यह विरोधाभास एक ग्रमीण में ही नहीं, बहुत पढ़े लिखे लोगों में भी है | और मुझे तो यह लगता है कि शायद पढ़े-लिखे लोगों की समस्याएं और अधिक जटिल हैं । वे इसलिए जटिल बन गयीं कि अनपढ़ आदमी में अभी तक महत्त्वाकांक्षाएं जागी नहीं हैं । वह कल्पना नहीं करता कि इतना आगे बढ़ा जा सकता है । शायद उसमें उतनी कल्पना नहीं है । किन्तु पढ़े-लिखे लोगों के सामने बुद्धि की प्रखरता ने इतनी कल्पनाएं दे दी, इतनी महत्वाकांक्षाएं जगा दीं, इतने बड़े बड़े मूल्य सामने रख दिए कि पूर्ति नहीं हो रही है और यह मन की अशान्ति के लिए बहुत अच्छी समग्री है। यह बहुत अच्छा अवसर है मानसिक अशान्ति का, मानसिक विक्षिप्तता का । यह तो एक स्वर्ण अवसर है कि महत्त्वाकांक्षा तो बहुत बढ़ जाए और पूर्ति न हो सके । इससे विकट कोई समस्या हो नहीं सकती । जब तक आदमी की महत्त्वाकांक्षा न जागे, शायद वह शान्ति का जीवन जी सकता है | हो सकता है कि विकास का जीवन न भी हो, पर शान्ति का जीवन भी जी सकता है । महत्त्वाकांक्षा जाग जाए और उसकी संपूर्ति न हो उस स्थिति में क्या बीतता है, वही जानता है या भगवान् जानता है, कल्पना नहीं की जा सकती । इतनी बेचैनी, इतनी कठिनाई और परेशानी होती है कि उस परेशानी को कोई बता नहीं सकता।
मानसिक समस्याओं के अनेक कारण हैं | उन सबका सम्यक् विश्लेषण किए बिना हम मन की समस्या को समाधान नहीं दे सकते । उन सारे प्रभावों को जाने बिना समाधान नहीं दिया जा सकता । हर व्यक्ति जाने या न जाने, पर कम से कम जो मानसिक शान्ति के क्षेत्र में काम करने वाले हैं, मानसिक
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