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अध्यात्म और विज्ञान दोनों का अध्ययन आवश्यक है। साथ-साथ कर्म-संस्कार का परिष्कार और परिस्थिति का परिवर्तन भी आवश्यक है।
___ कर्म-संस्कार के परिष्कार का उपाय है भावशुद्धि और व्यवहारशुद्धि। व्यवहारशुद्धि के तीन रूप बनते हैं
१. संयमपूर्ण व्यवहार। २. प्रामाणिक व्यवहार-नैतिकता। ३. मृदु व्यवहार।
मनुष्य में राग या आसक्ति का आवेश है, इसलिए वह असंयमपूर्ण व्यवहार करता है। उसमें लोभ का आवेश है, इसलिए वह अप्रामाणिक व्यवहार करता है। उसमें क्रोध और अहंकार का आवेश है, इसलिए वह क्रूर व्यवहार करता है। अवांछनीय व्यवहार का मूल हेतु है आवेश। जैसा आवेश वैसा व्यवहार-यह कर्मशास्त्रीय दृष्टिकोण है। जैसा रसायन वैसा व्यवहार-यह मानसशास्त्रीय दृष्टिकोण है। उसके अनुसार व्यवहार के नियंत्रण-सूत्र नाड़ीतंत्रीय और ग्रंथितंत्रीय रसायन है। वे बदलते रहते हैं
और उन्हें बदला जा सकता है। उन्हें बदलने का आध्यात्मिक सूत्र है- भावशुद्धि। जैसा भाव वैसा रसायन। भाव शुद्ध तो रसायन शुद्ध, भाव अशुद्ध तो रसायन भी अशुद्ध। भाव का स्रोत सूक्ष्म शरीर है। रसायन हमारे स्थूल शरीर में पैदा होते हैं। मानवीय व्यवहार की व्याख्या का आदि-सूत्र है कर्म का स्पन्दन। उसके दृश्य सूत्र हैं जैविक रसायन और जैविक-विद्युत्। इस श्रृंखला में कर्म-स्पन्दन भाव का, भाव जैविक रसायन का, जैविक रसायन विचार और व्यवहार का कारण बनता है।
कर्म-संस्कार के संचय का कारण है विचार और व्यवहार। विचार की एकाग्रता और व्यवहार की शुद्धि की प्रणाली सिखाने पर पचास प्रतिशत शिक्षा सम्पन्न हो जाती है। शेष पचास प्रतिशत शिक्षा का क्षेत्र है बौद्धिक और कर्म-कौशल (टेक्नोलोजी) का विकास।
तथ्यों का ज्ञान, देश और समाज के प्रति कर्तव्य का बोध, बौद्धिक शिक्षा के द्वारा हो सकता है। किन्तु आवेश-नियन्त्रण की प्रायोगिक शिक्षा के बिना कर्तव्य का सही रूप में पालन शक्य नहीं बनता। सामाजिक और आर्थिक विकास तकनीकी ज्ञान के द्वारा संभव हो सकता है पर उससे आर्थिक विषमता वाली व्यवस्था का परिवर्तन शक्य नहीं बनता। उसके लिए उस शिक्षा की जरूरत है, जो व्यक्ति को समाज के प्रति संवेदनशील बनाए, सृजनात्मक दृष्टिकोण का निर्माण करे।
__ आज के विद्यार्थी को व्यवहार-शुद्धि का पाठ नहीं पढ़ाया जाता, इसलिए वह समाज के साथ सामंजस्य स्थापित करने में सफल नहीं हो रहा है। उसे श्रमनिष्ठा का पाठ नहीं पढ़ाया जाता, इसलिए वह अपनी आर्थिक समस्या सुलझाने में सक्षम नहीं हो
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