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जीवन विज्ञान : सिद्धान्त और प्रयोग होती थी। आदमी उसका उपयोग करता था। उसके द्वारा दूर की बातों को देखता था। किन्तु जैसे-जैसे सामाजिक संघर्ष बढ़े, दूसरी परिस्थितियां बढ़ीं, बाहरी आवेश ज्यादा बढ़ा, वैसे-वैसे उसका उपयोग भूलते चले गए और वह तीसरी आंख लुप्त हो गई। छिपी हुई आज भी है किन्तु लुप्त हो गई। अन्तर्दृष्टि का विकास आध्यात्मिक प्रयोगों के बिना संभव नहीं। यह तो अच्छा हुआ कि शिक्षा के साथ सिद्धान्त के साथ प्रयोग की बात जुड़ गई। विज्ञान की सारी शिक्षा प्रायोगिक शिक्षा होती है। प्रयोग साथ में चलता है। केवल पढ़ना ही नहीं होता, प्रयोग चलता है। यह ध्यान की शिक्षा सैद्धांतिक भी है और प्रायोगिक भी। सिद्धांत भी चलता है और प्रयोग भी चलता है। यदि ध्यान की शिक्षा-पद्धति में कोरा सिद्धांत हो और प्रयोग न हो तो यह भी वैसी ही शिक्षा बन जाएगी। बिना प्रयोग के कुछ भी नहीं होता। एक आदमी ध्यान के बारे में दस पुस्तकें पढ़ ले, दो वर्ष तक बराबर पढ़ता रहे। मात्र बौद्धिक व्यायाम जैसा हो जाएगा, मिलेगा कुछ भी नहीं। जब तक अभ्यास नहीं होगा, तब तक कुछ भी उपलब्धि नहीं होगी।
यह निश्चित है कि अभ्यास के बिना अनुभव की चेतना नहीं जागेगी, अन्तर्दृष्टि नहीं जागेगी। अभ्यास जरूरी है। केवल कुछ दिन का अभ्यास पर्याप्त नहीं है। ध्यान कोई जादू-टोना या सम्मोहन नहीं है कि एक क्षण में ही अन्तर्दृष्टि जाग जाए। ध्यान तो एक परिस्थिति का निर्माण है। चेतना की परिस्थिति का निर्माण है। कुआं खोदने वाले का काम है- कुआं खोद देना। पानी लाने वाले का काम है- घर में पानी लाकर रख देना। पानी है, गिलास पड़ा है, कोई आदमी पानी नहीं पीता है, तो क्या कुएं का दोष होगा? क्या पानी लाने वाले का दोष होगा? उनका जितना काम था कर दिया, किन्तु पानी पीना तो अपने हाथ की बात है। यदि हमारा सतत अभ्यास चालू नहीं है तो ध्यान के द्वारा जो लाभ मिलना चाहिए वह लाभ कभी नहीं मिलता।आवश्यक है, उसका निरंतर प्रयोग चले, अभ्यास चले। अभ्यास के द्वारा हमारी अन्तर्दृष्टि जागती है। नियंत्रण हो नियंत्रण कक्ष पर
तीसरी बात है- अनुशासन का विकास। ललाट के मध्य में ज्योतिकेन्द्र है। उससे सारा संचालन होता है। भृकुटी से लेकर सर के अगले भाग तक पांच-छह अंगुल का जो भाग है, वह पूरे संचालन का काम कर रहा है। इसीलिए सबसे ज्यादा इस पर ध्यान केन्द्रित करना जरूरी है। यह खोज आज से हजारों वर्ष पहले हो चुकी थी। आज के शरीर-शास्त्र का प्रतिपादन है- पिच्यूटरी, पीनियल और हाइपोथेलेमस
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