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स्वतन्त्र व्यक्तित्व का निर्माण
६१ हैं कि यह सारी गड़बड़ी तो कर दी और अब क्षमा चाहता है। मैं ऐसा नहीं हूं कि क्षमा दे दूं। मैं उसे याद दिलाऊंगा कि क्षमा क्या होती है और उसने क्या किया था? लौकिक निर्णय तो यही होना चाहिए। इससे आगे क्या हो सकता है? यही होता है। शत-प्रतिशत यही होता है।
प्लेटो का अलौकिक स्वर कहां से आया? बुद्धि से नहीं आया। घटना को न देखना, घटना की प्रेरणा को न देखना, किन्तु घटना की एक अलौकिक व्याख्या करना- यह अन्तर्दृष्टि का स्वर हो सकता है, बौद्धिक जगत् का स्वर नहीं हो सकता। अनिवार्य है आध्यात्मिक प्रशिक्षण
स्वतंत्र व्यक्तित्व के लिए अन्तर्दृष्टि का विकास बहुत जरूरी है। जब तक अन्तर्दृष्टि का विकास नहीं होता तब तक हमारा व्यक्तित्व स्वतंत्र नहीं हो सकता। फिर तो हम दूसरों के इशारों पर खेल सकते हैं, किन्तु अपनी स्वतंत्र चेतना का उपयोग नहीं कर सकते।
क्या आदमी दूसरों के इशारों पर नहीं खेलता? स्वतंत्रता कहां उपलब्ध होती है? स्वतंत्रता की बात बहुत होती है किन्तु प्राणशक्ति का समुचित विकास हुए बिना और प्राणशक्ति के द्वारा अन्तर्दृष्टि को विकसित किए बिना स्वतंत्रता की चेतना जागती नहीं। जिन लोगों ने प्राणशक्ति का विकास नहीं किया अथवा प्राणशक्ति को अन्तर्दृष्टि के विकास में नहीं लगाया, वे हजारों वर्षों की चर्चा, विवेचना और उपदेशना के बाद आज भी अलौकिक और अन्तर्दृष्टि की प्रतीक्षा में बैठे हुए हैं। यह प्रतीक्षा अनन्तकाल तक चले तो भी काम नहीं होगा। प्रतीक्षा प्रतीक्षा रह जाएगी।
हम चाहते हैं- स्वतंत्र चेतना का जागरण हो, जिससे हमारी शिक्षा की सार्थकता बने और हम सही काम कर सकें। बिना प्रयत्न, बिना साधना, बिना अध्यात्म की दिशा का सहारा लिए ऐसा कभी संभव नहीं होगा। स्वतंत्र व्यक्तित्व की निर्मित के लिए शिक्षा के साथ अध्यात्म की शिक्षा का योग होना अनिवार्य है। प्रयोग के स्तर पर
___ केवल धर्म के आचार्य नहीं, आज के समाज-शास्त्री, वैज्ञानिक और मनोवैज्ञानिक भी इस भाषा में सोचते हैं कि पुराने मनुष्य के एक आंख और होती थी उसकी वह तीसरी आंख थी दर्शन-केन्द्र और ज्योति-केन्द्र। यह हर आदमी के
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