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________________ २६ जीवन विज्ञान : सिद्धान्त और प्रयोग आज की शिक्षा प्रणाली में यही एक सबसे बड़ी कमी है। उसमें इस ओर ध्यान ही नहीं दिया जाता। आदमी को उसकी भीतरी शक्तियों से परिचित नहीं कराया जाता। कोई भी विद्यार्थी यह नहीं जानता कि उसके भीतर ऐसी शक्ति भी है, जो ऐसे समय में काम दे सकती है जहां शरीर की शक्ति भी व्यर्थ हो जाती है। आज के विद्यार्थी को अपनी प्राणशक्ति पर भरोसा नहीं है, जानकारी नहीं है। यह देखा जाता है कि एक कमजोर व्यक्ति भी प्राण शक्ति के आधार पर ऐसा काम कर लेता है, जिस शक्ति के अभाव में एक हट्टा-कट्टा आदमी भी नहीं कर पाता। शरीर - बल ही सब कुछ नहीं है। शरीर के आधार पर व्यक्तित्व का और शक्ति का निर्णय नहीं हो सकता। एक दुबला-पतला आदमी हट्टे-कट्टे आदमी से भिड़कर उसे नीचे गिरा देता है। गिराने वाली शक्ति शरीर की नहीं होती, वह होती है प्राण की। आज की शिक्षा पद्धति में प्राण की शक्ति का कोई प्रशिक्षण नहीं है। उस पर विचार भी नहीं किया गया है। संरक्षण प्राण शक्ति का आज का आदमी धर्म, अहिंसा, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह को मानता है। कितना जानता है, यह अलग प्रश्न है, पर वह मानता अवश्य है। प्रश्न होता है कि अहिंसा, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह पर इतना बल क्यों दिया जाता है? दूसरा प्रश्न है- अहिंसा आदमी को कायर बनाती है। ब्रह्मचर्य आदमी को पागल और विक्षिप्त बनाता है। अपरिग्रह आदमी को भिखारी बनाता है। इतना होने पर भी इन पर इतना बल क्यों? इन पर बल देने का एक ही रहस्य था कि आदमी की प्राणशक्ति का व्यय कम हो, वह सुरक्षित रहे, उसका संवर्धन हो। एक प्राणशक्ति बढ़ती है तो अनेक शक्तियां बढ़ती हैं। प्राणशक्ति के अभाव में कोई भी बड़ी शक्ति विकसित नहीं होती। अनियन्त्रित काम : पागलपन का कारण कुछ मनोवैज्ञानिक मानते हैं - ब्रह्मचर्य की कोई जरूरत नहीं है मनुष्य के लिए। इससे आदमी ग्रंथिल होता है। वे कहते हैं- अपरिग्रह की रट ने देश को दरिद्र बना डाला है। उन मनोवैज्ञानिकों की पहुंच वहीं तक हो पाई थी। अब्रह्मचर्य के द्वारा शक्ति का कितना व्यय होता है? प्राणशक्ति का कितना खर्च होता है? आज की पूरी पश्चिमी सभ्यता में जो एक मानसिक विक्षेप आया है, उसको सबसे बड़ा कारण है यौन स्वच्छन्दता। वहां काम सेवन पर न सामाजिक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003108
Book TitleJivan Vigyana Siddhanta aur Prayoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2008
Total Pages236
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size9 MB
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