________________
जीवन विज्ञान : प्रायोगिक
२११ स्थिरता से बैठें। जिह्वा के आग्रभाग को मोड़कर तालू से सटा दें, जैसा कि खेचरी मुद्रा में किया जाता है। स्वर यन्त्र से श्वास को गले से स्पर्श करता हुआ खींचें। श्वास-प्रश्वास करते समय मधुर ध्वनि कानों को स्पष्ट सुनाई दे। श्वास/पूरक/प्रश्वास/रेचक/धीरे-धीरे शांत भाव से हो। मन्त्र जाप के समय इसका प्रयोग किया जा सकता है। जैसे सोहं । अहँ । श्वास भरकर (पूरक) जालंधर बन्ध लगाएं। समय :
तीन मिनट से आधा घण्टा तक समय की सुविधानुसार किया जा सकता है।
लाभ:
रक्तचाप का शमन करता है। नाड़ी संस्थान को शक्तिशाली बनाता है। स्वर मधुर होता है। चिन्ता-नाशक और चित्त की स्थिरता को बढ़ाने वाला है। साधना में गति करने वाले जालन्धर बन्ध के साथ करके लम्बे समय पर निर्विचार की स्थिति को प्राप्त कर सकते हैं। श्लेष्म रोग नष्ट होता है। दूषित वायु, अजीर्ण, आमवात, क्षय, कांस, ज्वर, प्लीहा आदि रोग दूर होते हैं | सम्पूर्ण शरीर में शक्ति का संचार होता है। टॉन्सिल, खांसी एवं जुकाम की विकृतियां दूर होती हैं।
३. शीतली प्राणायाम पद्मासन, सुखासन आदि किसी सुविधा एवं सुखपूर्वक ठहरने वाले आसन का प्रयोग करें। हाथ घुटनों पर चिन्मय मुद्रा में रखें। जीभ को मुख से बाहर निकाल कर कौए की चोंच के समान बनाएं। जीभ के किनारों को मोड़कर गोलाकार बनाने से पोली नली सी बन जाती है। इस पोली नली से श्वास को धीरे-धीरे अन्दर लें । फेफड़े पूरे भरें। तनुपट का दबाव नाभि तक जाए।
श्वास को कुंभक कर रोकें । जितना आराम से हो सके, अधिक से अधिक समय तक श्वास संयम (कुंभक) करें। फिर दोनों नासिकाओं से धीरे-धीरे प्रश्वास करें। समय :
एक मिनट से लेकर पांच मिनट करें। विशेष रोग या गर्मी से शमन के लिए समय को बढ़ाया जा सकता है। यह शीतलता बढ़ाता है, पित्त को शमित करता है। इसे ग्रीष्म ऋतु में किया जाता है। पित्त प्रकृति वाले स्वयं की स्थिति को देखकर या निर्देश से सर्दी में भी कर सकते हैं।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org