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जीवन विज्ञान : स्वरूप और आवश्यकता वर्तमान शिक्षा की निष्पत्ति
शिक्षा के चार आयाम हैं-शारीरिक विकास, मानसिक विकास, बौद्धिक विकास और भावनात्मक विकास। इन चारों में व्यक्तित्व-निर्माण से संबंधित सभी विकास समाविष्ट हैं। इस संदर्भ में हम वर्तमान शिक्षा-प्रणाली पर विमर्श करें। हम यह सोचें कि वर्तमान में प्रचलित शिक्षा का क्रम कैसा है? शिक्षा की प्रणाली कैसी है? आज की शिक्षा-प्रणाली को दोषपूर्ण कहना संगत नहीं लगता। जो चल रही है, वह अपने आप में कृतकृत्य है। हम किसी भी वस्तु को दोष या गुण के माध्यम से समीक्षित करना चाहें तो हमें परिणाम और निष्पत्ति पर विचार करना ही होगा। आज शिक्षा की जो निष्पत्तियां प्रत्यक्ष हो रही हैं, उन्हें देखते हुए यह नहीं कहा जा सकता कि आज की शिक्षा कोई फल नहीं दे रही है। जिस विषय की आज शिक्षा दी जा रही है, उसकी निष्पत्तियां आ रही हैं। आज अच्छे डाक्टर, अच्छे वकील, अच्छे इंजीनियर, अच्छे शिक्षक अपने-अपने विषय में निष्णात होकर समाज में आ रहे हैं। इस स्थिति में हम कैसे माने या कहें कि शिक्षा-प्रणाली दोषपूर्ण है, त्रुटिपूर्ण है? जब निष्पत्तियां ठीक हैं तो हम कैसे स्वीकार करें कि शिक्षा सही नहीं है? फिर प्रश्न होता है कि शिक्षा की समस्या क्या है? असंतुलन शिक्षा प्रणाली
हमारी शिक्षा-प्रणाली संतुलित नहीं है। संतुलित शिक्षा-प्रणाली वह होती है जिसमें व्यक्तित्व के चारों आयाम संतुलित रूप से विकसित होते हैं। शरीर का विकास भी अपेक्षित है, मन का विकास भी अपेक्षित है, बुद्धि और भावना का विकास भी अपेक्षित है। आज की शिक्षा में इन चार आयामों में से दो आयामों पर अधिक ध्यान दिया जा रहा है। वे दो आयाम हैं- शारीरिक विकास का आयाम और बौद्धिक विकास का आयाम। शेष दो आयाम उपेक्षित पड़े हैं। आज शारीरिक विकास बहुत हुआ है और बौद्धिक विकास भी प्रतिदिन बढ़ रहा है किन्तु मानसिक विकास और भावनात्मक विकास नहीं हो रहा है। शिक्षा-प्रणाली का यह असंतुलन है। इस असंतुलित शिक्षा-प्रणाली की निष्पत्तियां
क्या हैं, इस पर भी हम विचार करें। विपर्यास का निदर्शन
आज शिक्षा-संस्थानों के समक्ष भी अनेक समस्याएं हैं। प्राथमिक स्कूलों
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