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जीवन विज्ञान : सिद्धान्त और प्रयोग की समस्याएं कम हैं, किन्त कॉलेज और विश्वविद्यालय की समस्याएं अधिक हैं। जैसे-जैसे बौद्धिक विकास बढ़ता चला जाता है, वैसे-वैसे समस्याएं उग्र होती चली जाती हैं। इस स्थिति में हम विद्यार्थियों से अनुशासन की अपेक्षा कैसे कर सकते हैं? विद्यार्थी में अनुशासन आए, यह शिक्षा-संस्थान की अपेक्षा है,परिवार वालों की भी अपेक्षा है। विद्यार्थी में चरित्र का विकास हो, यह सबकी अपेक्षा है। शिक्षा-संस्थान, परिवार, समाज और राष्ट्र सब की अपेक्षा है। समाज को चरित्र-विकास की अधिक अपेक्षा है। हम शिक्षा से चरित्र का विकास, अनुशासन का विकास, संयम और सहिष्णुता का विकास चाहते हैं किंतु ये निष्पत्तियां नहीं आ रही हैं। जो निष्पत्तियां आ रही हैं, वे हैं तोड़फोड़ की, हिंसक उपद्रवों की और उदंडता की। उसका कारण बहुत स्पष्ट है कि विद्यार्थी के मानसिक और भावनात्मक विकास के लिए, शिक्षा के पास कुछ भी देने को नहीं है। आज स्कूलों में शारीरिक व्यायाम कराने वाले अध्यापक मिलेंगे, आसन कराने वाले मिलेंगे और बौद्धिक विकास की प्रचुर सामग्री देने वाले अध्यापक मिलेंगे, किंतु मानसिक विकास और भावनात्मक विकास कराने वाला एक भी नहीं मिलेगा। न तो आज की सरकार इस विकास की चिंता करती है और न आज की शिक्षा प्रणाली में ऐसी विद्या भी है, जिससे यह अपेक्षा पूरी हो सके। हम बीज बोते नहीं, पर परिणाम की आकांक्षा करते हैं और सारा दोषारोपण शिक्षा-प्रणाली पर कर देते हैं। यह एक ऐसा ही प्रयत्न है, जो विपर्यास का स्पष्ट निदर्शन है। व्यर्थ है आरोपण
विरोध है घर के स्वामी से, पर वह है शक्तिशाली। उसके साथ संघर्ष नहीं किया जा सकता। पर व्यक्ति विरोध प्रदर्शन का दूसरा तरीका अपना लेता है, उसकी गाय-भैंस पर लाठियां चलाने लग जाता है, उनको पीटना प्रारम्भ कर देता है। अरे! उन पशुओं ने तुम्हारा क्या बिगाड़ा?
__ आज यही हो रहा है। आदमी चारित्रिक विकास देखना चाहता है, अनुशासन को प्रतिष्ठित देखना चाहता है, पर जब उनकी परिणति नहीं देखता, तब सारा दोष शिक्षा-प्रणाली पर लाद कर सुख की सांस लेता है। शिक्षा-प्रणाली में जब चारित्रिक विकास के बीज ही नहीं हैं, अनुशासन लाने वाले तत्व ही नहीं है तब उनकी परिणति साक्षात कैसे होगी? यह प्रयत्न बीज के बिना फल पाने जैसा है। यदि शिक्षा-प्रणाली में चरित्र और अनुशासन के बीज हों किन्तु
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