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जीवन विज्ञान : सिद्धान्त और प्रयोग
उसे उस दिशा में चलना होगा।
लोग धर्म को जानते हैं पर जब तक उसके नियमों पर नहीं चलेंगे, उस ओर प्रस्थान नहीं करेंगे, तब तक धर्म का असर कैसे होगा?
आदमी शराब के घंट मुंह में लेता है और थक देता है, गले के नीचे एक बूंद भी नहीं उतारता, यदि वह पूरा घड़ा भी इस तरह खाली कर दे तो उसे नशा नहीं आएगा। धर्म करने वाले लोग धर्म को अगर गले से नीचे नहीं उतारते, ऊपर ही ऊपर उसे थूक देते हैं तो धर्म का प्रभाव कैसे हो सकता है? धर्म का नशा कैसे चढ़ सकता है ?
वर्तमान शिक्षा : अधूरी प्रक्रिया
आज शिक्षा का प्रभाव नहीं हो रहा है क्योंकि उसकी प्रक्रिया पूरी नहीं हो रही है। शिक्षा की पूरी प्रक्रिया है- ग्रहण करो फिर उसका आसेवन करो, जीवन में उतारो। जानो और प्रयोग करो। आज यह आसेवन की बात छूट सी गई है।
पतञ्जलि से पूछा गया - चित्त का निरोध कैसे होता है?
उन्होंने कहा- चित्त निरोध के दो उपाय हैं- अभ्यास और वैराग्य ।
अर्जुन ने कृष्ण से पूछा- मन का निरोध कैसे हो सकता है?
कृष्ण ने कहा- पार्थ! अभ्यास और वैराग्य के द्वारा मनोनिग्रह साधा जा सकता है।
आज अभ्यासात्मक शिक्षा छूट गई, ज्ञानात्मक शिक्षा बच गई। शिक्षा का एक चरण टूट गया। वह लंगड़ी हो गई इसलिए शिक्षा का जो परिणाम आना चाहिए था, वह नहीं आ रहा है। मनुष्य की तीनों वृत्तियों- जिज्ञासा, बुभूषा और चिकीर्षा का माध्यम है शिक्षा । जिज्ञासा का समाधान शिक्षा के द्वारा होता है । बुभूषा और चिकीर्षा का समाधान भी शिक्षा के द्वारा होता है। दूसरे शब्दों में, करने का कौशल शिक्षा से प्राप्त होता है। होने या बदलने का पराक्रम भी शिक्षा के द्वारा प्राप्त होता है और जानने का माध्यम भी शिक्षा से ही प्राप्त होता है। जिज्ञासा, बुभूषा और चिकीर्षा के क्षेत्र को भी जानना आवश्यक है । जानने का क्षेत्र क्या है? होने और करने का क्षेत्र क्या है? हम क्षेत्र पर विचार करें। किसी भी वस्तु या तथ्य पर विचार करते समय देश (क्षेत्र) और काल पर भी विचार करना होता है। देश और काल को छोड़कर हम किसी भी वस्तु की मीमांसा नहीं कर सकते ।
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