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________________ जीवन विज्ञान : स्वरूप और आवश्यकता मनुष्य आदिकाल से अब तक क्रमिक विकास करता आ रहा है। उसमें विकास की तीन वृत्तियां उपलब्ध हैं- जिज्ञासा, बुभूषा और चिकीर्षा । मनुष्य में जिज्ञासा है। वह प्रतिदिन नए-नए तथ्य जानना चाहता है। उसमें बुभूषा है। वह कुछ होना चाहता है। वह अपने आपको बदलना चाहता है। वह जैसा है, वैसा ही रहना नहीं चाहता । मनुष्य बनना चाहता है, कुछ होना चाहता है और कुछ करना चाहता है। इन तीन वृत्तियों ने विकास क्रम को आगे बढ़ाया है। आज विकास का क्रम बहुत ऊंचे शिखर तक पहुंचा हुआ है और विकास के लिए उसने माध्यम बनाया है शिक्षा को । शिक्षा का अर्थ शिक्षा प्रत्येक विकास की अधिष्ठात्री रही है। शिक्षा का मूल अर्थ है अभ्यास । आज यह अर्थ विस्मृत हो गया है। आज शिक्षा का अर्थ है अध्ययन | अभ्यास दो प्रकार का होता है- ग्रहणात्मक अभ्यास और आसेवनात्मक अभ्यास। पहले ग्रहण करो, जानो और फिर उसका आसेवन करो, प्रयोग करो । शिक्षा इन दो चरणों में चलती थी। शिक्षा का पहला चरण था 'ग्रहण' और दूसरा चरण था 'आसेवन' । जानना भी शिक्षा है, पर जानना मात्र ही शिक्षा नहीं है। आसेवन भी शिक्षा है और यह शिक्षा का महत्वपूर्ण अंग है। धर्म की शिक्षा - प्राप्ति के लिए भी यही क्रम हैं और बौद्धिक शिक्षा प्राप्ति के लिए भी यही क्रम है। यक्ष प्रश्न आज धर्मजगत के समक्ष एक प्रश्न रह-रहकर उभर रहा है। वह प्रश्न है, आज धर्म का असर क्यों नहीं हो रहा है? आदमी जानता है कि दिल्ली कितनी दूर है पर जब तक उस ओर प्रस्थान नहीं करता, वह दिल्ली कैसे पहुंच सकता है? दिल्ली पहुंचने के लिए Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003108
Book TitleJivan Vigyana Siddhanta aur Prayoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2008
Total Pages236
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size9 MB
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