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________________ १२४ जीवन विज्ञान : सिद्धान्त और प्रयोग मूल्य है, उसकी तुलना अध्यात्म के स्तर पर ही हो सकती है। दोनों में असमानता है, ऐसा नहीं कहा जा सकता। शरीर के स्तर का मूल्य है भोजन करना और अध्यात्म के स्तर का मूल्य है भक्ति करना। प्रश्न होता है कि भोजन का मूल्य अधिक है या भक्ति का ? इस विषय में एकांगी दृष्टि से कुछ नहीं कहा जा सकता। इससे अधिक या कम की तुलना नहीं की जा सकती। हमारा निर्णय होता है कि शारीरिक स्तर पर भोजन का मूल्य अधिक है और आध्यात्मिक स्तर पर भक्ति का मूल्य अधिक है। मूल्य है अपना-अपना बहुत बार प्रश्न आता है कि गृहस्थी का स्थान ऊंचा है या संन्यास का ? . इसकी तुलना करना बहुत कठिन है। दो स्तरों के बीच समानता की बात नहीं सोची जा सकती। गृहस्थ के स्तर में और संन्यासी के स्तर में बहुत बड़ा अन्तर है। सामाजिक स्तर पर गृहस्थ का मूल्य अधिक है और अध्यात्म के स्तर पर सन्यासी का मूल्य ज्यादा है। किन्तु दोनों की तुलना नहीं की जा सकती। स्तर अलग हैं। जब तक यह स्तरीय बोध स्पष्ट नहीं होता, तब तक उलझनें पैदा होती रहती हैं। प्राचीन साहित्य में कहा गया है-'गृहस्थाश्रमसमो धर्मो न भूतो न भविष्यति'-गृहस्थाश्रम के समान न तो कोई धर्म हुआ है और न होगा। इसी प्रकार संन्यास का भी अपना स्थान है। उसके समान कोई आश्रम नहीं है। स्तरों की तुलना नहीं हो सकती। हम उनका मूल्यांकन भिन्न-भिन्न दृष्टि से ही कर सकते हैं। धर्म और सम्प्रदाय का अपना मूल्य है। धर्म है आध्यात्मिक चेतना का जागरण, और संप्रदाय है चेतना के जागरण में सहयोग देने वाला संस्थान। धर्म का लक्ष्य है बंधन मुक्त होना। संस्थागत धर्म से विरोध हो सकता है, पर चारित्रिक धर्म से विरोध नहीं हो सकता। धर्म और संप्रदाय-दोनों का अपना-अपना मूल्य है। घड़ा बना, इसमें ज्यादा योग मिट्टी का है या कुम्हार का ? ज्यादा-कम नहीं बताया जा सकता। दोनों का अलग-अलग मूल्य है। मिट्टी मूल कारण है और कुम्हार निमित्त कारण है। घड़ा दोनों कारणों से बनता है। दोनों का अपना-अपना स्तरीय मूल्य है। शिक्षा के क्षेत्र में मूल्यों की चर्चा बहुत आवश्यक है। इसके दो पहलू हैं-मूल्य की सीमा का बोध और मूल्य-प्राप्ति के साधनों का बोध। प्रश्न है कि विद्यार्थी को ये मूल्य कैसे प्राप्त कराए जाएं। जीवन-विज्ञान की प्रणाली में मूल्य-प्राप्ति के साधनों के प्रयोग निर्धारित किए गए है। उनका अभ्यास Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003108
Book TitleJivan Vigyana Siddhanta aur Prayoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2008
Total Pages236
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size9 MB
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