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शिक्षा और जीवन मूल्य
१२५ करने से मूल्यात्मक चेतना विकसित होती है।
मूल्य-बोध में दार्शनिक दृष्टि बहुत आवश्यक है और मूल्य-प्राप्ति के लिए आध्यात्मिक प्रयोग जरूरी है। मूल्यांकन में बहुत अन्तर होता है, इसलिए दार्शनिक दृष्टि बहुत स्पष्ट होनी चाहिए। मूल्यांकन समान नहीं होता। जब तक सर्वांगीण जीवन-दर्शन के द्वारा मूल्यपरक दृष्टि स्पष्ट नहीं होती तब तक मानसिक उलझनें मिटती नहीं।
शिक्षा में मूल्य-बोध जितना स्पष्ट होगा उतनी ही स्थिति स्पष्ट होगी और सामाजिक मूल्यों का सामंजस्य होगा। मूल्य-बोध की स्पष्टता और उनकी सीमा का बोध नितान्त आवश्यक है।
मानसिक सन्तुलन का प्रश्न
मानसिक संतुलन और धैर्य-ये दो मानसिक मूल्य हैं। तनाव के कारण अनेक उपद्रव होते हैं। तनाव में मानसिक संतुलन अस्त-व्यस्त हो जाता है। संतुलन के अभाव में समस्याएं पैदा होती हैं। पारिवारिक कलह, सामाजिक संघर्ष आदि असंतुलन की देन हैं।
इस स्थिति में विद्यार्थी को मानसिक असंतुलन से होने वाली समस्याएं और परिणाम तथा मानसिक संतुलन से होने वाले लाभ का पूरा बोध कराना आवश्यक है। केवल बोध ही नहीं, उसे प्रयोगात्मक रूप से यह भी सीखाना जरूरी है कि मानसिक संतुलन कैसे प्राप्त किया जा सकता है।
___ मनोविज्ञान और दर्शन के क्षेत्र में मानसिक संतुलन की चर्चाएं हुईं। वहां इसकी पूरी जानकारी प्राप्त है, पर प्रयोग वहां उपलब्ध नहीं हैं, इस दृष्टि से वह जानकारी अधूरी रह जाती है।
विद्यार्थी को केवल मूल्य-बोध करा देना ही पर्याप्त नहीं है, उसको प्रयोग सिखाने चाहिए। जानकारी का अगला चरण है प्रयोग। दोनों पक्ष संयुक्त है। मानसिक संतुलन उपायों के द्वारा प्राप्त किया जा सकता है और वातावरण को अच्छा बनाया जा सकता है। कोई व्यक्ति अपने मानसिक स्वास्थ्य को नहीं बिगाड़ता है तो यह बहुत बड़ी बात है। मानसिक अस्वास्थ्य या असंतुलन के कारण ही सारी समस्याएं उभरती हैं।
आज की शिक्षा में ज्ञानात्मक पक्ष उजागर हैं, किन्तु प्रयोगात्मक पक्ष कमजोर है या है ही नहीं। इसलिए शिक्षा अधूरी है। यदि उसे पूरी बनाना है तो दोनों
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