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________________ ९७ शिक्षा का नया आयाम : जीवन विज्ञान संवेदनशीलता का सूत्र जब टूट जाता है तब क्रूरता, अप्रामाणिकता, अनैतिकता, मिलावट आदि बुराइयां बढ़ती हैं। जब आदमी संवेदनशील नहीं होता तब वह दूसरों को कष्ट देने में संकोच नहीं करता। जिस व्यक्ति में यह भावना होती है कि दूसरों को कष्ट देने का अर्थ है स्वयं को कष्ट देना, वह आदमी कभी बुराई नहीं कर सकता, धोखा नहीं दे सकता, क्रूर व्यवहार नहीं कर सकता। जब यह चेतना सिकुड़ जाती है, तब कोई भी क्रूर कर्म करने में हिचकिचाहट नहीं होती। __ संवेदनशीलता है-एक दूसरे के साथ एकात्मकता का व्यवहार करना, तादात्म्य की अनुभूति के लिए व्यक्तित्व का परिष्कार करना। इसके लिए प्रयत्न करना होता जीवन विज्ञान : परिष्कार की प्रक्रिया ___ संवेग वैयक्तिक तत्त्व है। इसका परिष्कार करना बहुत जरूरी है। संवेग के परिष्कार का अर्थ है निषेधात्मक भावों का परिष्कार। क्रोध, मान, माया, लोभ, ईर्ष्या, घृणा- ये सब निषेधात्मक भाव हैं। विधायक भावों का जितना विकास होगा, उतना ही संवेदनशीलता का सूत्र आगे बढ़ेगा। आनुवंशिकता का परिष्कार भी संवेदन-परिष्कार के द्वारा किया जा सकता है। आनुवंशिकता का प्रभाव व्यक्ति के चरित्र, नैतिकता और मानसिकता पर ज्यादा होता है। नैतिकता आनुवंशिकता से प्रभावित होती है। संवेग-परिष्कार के द्वारा इसका भी परिष्कार किया जा सकता है। प्रश्न होता है कि संवेगों का परिष्कार कैसे किया जाए? बहुत कठिन समस्या है। मनोविज्ञान ने संवेगों की विस्तृत व्याख्या की है और व्यक्ति संवेगों से कितना प्रभावित होता है, यह भी विस्तार से बताया है। किंत संवेगों का परिष्कार कैसे किया जाए- इसकी व्याख्या मनोविज्ञान की अपेक्षा अध्यात्म, धर्म और योग में अधिक उपलब्ध है। किन्तु कठिनाई यह है कि आज की शिक्षा में अध्यात्म, धर्म और योग को अनावश्यक माना गया है। आवश्यक नहीं मानने का कारण है-धर्म की ज्योति संप्रदाय की राख से इतनी ढंक गई है कि उसके अस्तित्व का भी बोध होना दुर्लभ हो गया है। साम्प्रदायिकता के कारण अध्यात्म के मूल तत्त्व नीचे दब जाते हैं। संप्रदाय को इतना महत्त्व मिल गया कि अध्यात्म की शुद्ध धारा विलुप्त हो गई। उसे पकड़ पाना भी कठिन हो गया। यह बहुत बड़ी समस्या है। इसका समाधान सूत्र है-संवेग को संतुलित, व्यवस्थित और परिष्कृत करना। जीवन विज्ञान इन्हें परिष्कृत करने की परिष्कृत प्रक्रिया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003108
Book TitleJivan Vigyana Siddhanta aur Prayoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2008
Total Pages236
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size9 MB
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