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श्वास और हृदय श्वास से प्रश्वास को दुगुना या चौगुना करके श्वसन को नियंत्रित किया जा सकता है। इससे मस्तिष्क को विश्राम या शिथिलीकरण प्राप्त होता है क्योंकि श्वास बाहर छोड़ने में किसी भी प्रकार का मांसपेशीय तनाव नहीं पड़ता। हदय दर इसमें स्वभावतः निम्न रहती है। इस प्रकार श्वसन के अभ्यास से कालान्तर में मस्तिष्कीय तरंगें प्रभावित होती हैं जिससे शरीर के अन्य अंग व प्रणालियां भी प्रभावित होती हैं।
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२१ मार्च २०००
(भीतर की ओर)
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