________________
क
00000
आत्मदर्शन
आत्मा के द्वारा आत्मा को देखो। यह आत्मदर्शन का एक संकेत है। चैतन्य जगत में आत्मा एक है। वह कषाय से परिवृत्त भी है। उसके अनेक रूप बन जाते हैं ।
देखने वाली है चैतन्य स्वरूप आत्मा और उसके नाना रूप दृश्य बनते हैं ।
आत्म दर्शन
मैं कौन हू
• वासना पुरुष
• इच्छा पुरुष
• आनन्द पुरुष
• प्राण पुरुष
• प्रज्ञा पुरुष
मैं कहां हूं
काम केन्द्र की चेतना सक्रिय नाभि की चेतना सक्रिय
हृदय की चेतना सक्रिय नासाग्र की चेतना सक्रिय दर्शन केन्द्र की चेतना सक्रिय
१० मार्च
२०००
भीतर की ओर
८६
Jain Education InternationaFor Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org