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रुठठक
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कायोत्सर्ग-[७) जैन साधना पद्धति का प्रारम्भ बिन्दु है कायोत्सर्ग और अंतिम बिन्दु है कायोत्सर्ग। यह ध्यान के प्रत्येक प्रयोग के पूर्व अथवा ध्यान की पूर्व कालावधि में करणीय है। इसका महत्त्व जितना ध्यान की दृष्टि से है, उतना ही स्वास्थ्य की दृष्टि से भी है। हृदयरोग, उच्च रक्तचाप आदि की स्थिति में कायोत्सर्ग बहुत उपयोगी है। डॉक्टर जिन-जिन स्थितियों में पूर्ण विश्राम का निर्देश देते हैं, उन सब स्थितियों में कायोत्सर्ग का उपयोग किया जा सकता है। हडी टूटने पर पट्टा बांधा जाता है, उस स्थिति में भी अस्थिभंग के स्थान पर कायोत्सर्ग का प्रयोग किया जाए तो अस्थिसंधान की गति त्वरित हो सकती है।
२७ फरवरी
२०००
भीतर की भोर)
भीतर की ओर)
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