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कायोत्सर्म-(६) 'शरीर मेरा है—यह ममत्व की ग्रन्थि जितनी पुष्ट होती है उतना ही तनाव होता है।
शरीर के विसर्जन का भाव-शरीर मेरा नहीं है', यह भाव जैसे-जैसे पुष्ट होता है वैसेवैसे ममत्व की ग्रन्थि खुलती जाती है।
यह ममत्व का विसर्जन कायोत्सर्ग का प्राणतत्त्व है। यह जितना सिद्ध होगा, उतनी ही स्थिरता और शिथिलता सिद्ध होगी।
-muninsta
२६ फरवरी २०००
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_______(भीतर की भोर)
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