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मितभाषण
वाणी हमारे विकास का माध्यम है। साधना की दृष्टि से विचार करें तो वह चंचलता बढ़ाने वाली है। जो अचंचल होने की साधना करना चाहता है उसके लिए वाणी की चंचलता को कम करना जरूरी है।
मनुष्य के बहुत सारे प्रयोजन वाणी से जुड़े हुए हैं। वह सदा सर्वदा मौन रहे यह संभव नहीं है। फिर भी यथावकाश यथोचित वाणी का संयम करे, यह आवश्यक है। मितभाषण उसी का प्रयोग है।
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I
११ फरवरी
२०००
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(भीतर की ओर
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