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वक्चक्रुष्ठ
ध्यान और कल्पना
निर्विकल्प ध्यान ध्यान की उत्कृष्ट अवस्था है । विकल्प को कम करना भी ध्यान-सिद्धि के लिए इष्ट है।
अंतिम नियम को प्रारम्भ में लागू नहीं किया जा सकता। ध्यान का अभ्यास करते-करते विकल्प की न्यूनता हो सकती है, निर्विकल्प ध्यान हो सकता है किन्तु ध्यान के प्रथम चरण में कल्पना भी आवश्यक है।
कल्पना ध्यान को आगे बढ़ाती है। मन से कल्पना करें और उस पर ध्यान टिकाएं। इसमें रंग, उपवन, पेड़, समुद्र, बादल, आकाश आदि की कल्पनाएं बहुत उपयोगी होती हैं।
२७ जनवरी
२०००
भीतर की ओर
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