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वठठल
सार्थकता का प्रश्न
श्वास, प्राण और शरीर मिला है, इसलिए जीना है। यह जीने का एक पक्ष है । यह वास्तविकता है किन्तु सार्थकता नहीं ।
जीने की सार्थकता है अपने-आप का ज्ञान, अपनी पहचान । वह चेतना को अन्तर्मुखी बनाने पर ही हो सकती है।
अन्तर्मुखी होने के लिए ध्यान उतना ही जरूरी है, जितना जरूरी है जीवन के लिए श्वास |
०५ जनवरी
२०००
भीतर की ओर
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