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पहले शीव फिर्व मन मानसिक विकास हो—यह चाह बहुत प्रबल है। साधक को मानसिक विकास से पहले कायिक विकास पर ध्यान देना चाहिए। साधना के क्षेत्र में शरीर जितना सहयोगी है, उतना मन नहीं।
जो साधक शरीर में प्रवहमान प्राण के प्रवाह को नहीं जानता, शरीर में बनने वाले विभिन्न रसायनों और प्रोटीनों को नहीं जानता, वह साधना का विकास नहीं कर सकता, मानसिक विकास भी नहीं कर सकता।
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१० जुलाई २०००
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