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ठठण्डत
मन की प्रकृति
श्वास न प्रिय होता है और न अप्रिय । वह जीवन का एक नियम है। उसके आधार पर वह आता रहता है ।
श्वास एकाग्रता का बहुत अच्छा आलम्बन है । मन की चंचलता को कम करने के लिए उसे देखना जरूरी है। जो व्यक्ति श्वास की गति को देखना शुरू करता है वह मन की गति को नियमित कर देता है ।
चंचलता मन की प्रकृति है । उसे निश्चल नहीं किया जा सकता । श्वास के आलम्बन से उसकी चंचलता को कम किया जा सकता है ।
११ जुलाई
२०००
भीतर की ओर
२०६
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